यूपी का आजमगढ़ शहर अपने इतिहास और पौराणिक कथाओं के लिए दुनियाभर में फेमस है. पौराणिक कथाओं की मानें तो आजमगढ़ से भगवान शिव और माता पार्वती का गहरा नाता है. इसके अलावा यहां दुर्वासा ऋषि का आश्रम भी है.
दुर्वासा ऋषि का यह आश्रम फूलपुर तहसील में बना है. यहां कार्तिक पूर्णिमा के दिन एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है.
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, सती अनुसुइया और अत्रि मुनि के पुत्र महर्षि दुर्वासा 12 वर्ष की आयु में चित्रकूट से फूलपुर के बनहर मय चक गजड़ी गांव के पास तमसा-मंजूसा नदी के पास आ गए थे.
कहा जाता है कि दुर्वासा ऋषि ने यहां कई वर्षों तक तपस्या की. पौराणिक कथाओं के अनुसार, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग में महर्षि दुर्वासा उक्त स्थान पर रहे.
वहीं, कलयुग के शुरुआती काल में वह तप स्थल पर ही अन्तर्ध्यान हो गए. आज भी तपो स्थल पर दुर्वासा ऋषि की भव्य प्राचीन प्रतिमा स्थापित है.
आदि गंगा के नाम से प्रसिद्ध तमसा व मंजुसा नदी के संगम पर दुर्वासा ऋषि का यह आश्रम स्थित है.
कहा जाता है कि महर्षि दुर्वासा ने 88 हजार ऋषियों के साथ यहां पर यज्ञ किया था.
आज भी अनवरत श्रीराम नाम का संकीर्तन यहां होता रहता है. कहा जाता है कि आज भी यहां कई ऋषिगण निवास करते हैं.
दुर्वासा ऋषि आश्रम पर हर साल तीन दिवसीय मेले का आयोजन होता है.
मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन संगम में स्नान करने व भगवान की श्रद्धा के साथ पूजा अर्चन करने से 100 पापों से मुक्ति मिलती है.
मान्यता यह भी है कि दुर्वासा धाम में आने वाले भक्त जब तक पंचकोसी परिक्रमा पूरी न करें, तब तक उन्हें पुण्य नहीं मिलता.
तमसा नदी के किनारे ही त्रिदेवों के अंश चंद्रमा मुनि आश्रम, दत्तात्रेय आश्रम और दुर्वासा धाम स्थित है.
इन तीनों पावन स्थलों की परिक्रमा करके पांच कोस की दूरी तय की जाती है.
पौराणिक पात्रों की यह कहानी धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों में किए गए उल्लेख पर आधारित है. इसके काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.