बनारस के 80 घाटों में से दो घाट मणिकर्णिका घाट और राजा हरिशचंद्र घाट पर शवदाह किया जाता है और इन्हीं दो घाटों पर डोम राजा का परिवार रहता है.
धरती का यमराज कहे जाने वाले डोम राजा शवों का दाह संस्कार कर उन्हें मोक्ष का रास्ता देते हैं. शवों का अंतिम संस्कार केवल डोम जाति वाले ही करते हैं.
डोम राजा के परिवार का रहन-सहन आम लोगों से अलग है. इनके घर का चूल्हा चिताओं की आग से जलाई जाती है जिसपर परिवार का खाना बनता है.
प्रचलित पौराणिक कथा है कि भगवान शिव माता पार्वती के साथ एक बार काशी भ्रमण के लिए आए.
तभी मणिकर्णिका घाट पर स्नान करते समय माता पार्वती के कान का एक कुंडल गिर गया, जिसे कालू नामक एक राजा ने उठा कर अपने पास रख लिया.
बहुत खोजने के बाद भी कुंडल नहीं मिल सका और आखिर में महादेव ने क्रोध में कुंडल चोर को नष्ट हो जाने का श्राप दे दिया.
इस श्राप के डर से कालू ने कुंडल अपने पास रखने की बात स्वीकार कर ली और भोलेनाथ शंकर और मां पार्वती से क्षमा मांगी.
इसके बाद शिवजी ने कालू राजा को श्राप से मुक्ति देते हुए उसे श्मशान घाट का राजा घोषित किया.
कहते हैं कि कालू राजा और उसके वंशज श्मशान शवों को तभी से मुक्ति दे रहे हैं. मान्यता है कि कालू राजा के वंश को ही डोम राजा कहते हैं.
यहां दी गई सभी जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. Zeeupuk इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.