तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे मैं एक शाम चुरा लूं अगर बुरा न लगे
तमाम रात नहाया था शहर बारिश में वो रंग उतर ही गए जो उतरने वाले थे
मैं वो सेहरा जिसे पानी की हवस ले डूबी तू वो बादल जो कभी टूट के बरसा ही नहीं
दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था इस तरह बरसात का मौसम कभी आया न था
साथ बारिश में लिए फिरते हो उसको ऐ 'अंजुम' तुम ने इस शहर में क्या आग लगानी है कोई
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है
भीगी मिट्टी की महक प्यास बढ़ा देती है दर्द बरसात की बूंदों में बसा करता है
अब के बारिश में तो ये कार-ए-ज़ियां होना ही था अपनी कच्ची बस्तियों को बे निशां होना ही था
दूर तक फैला हुआ पानी ही पानी हर तरफ़ अब के बादल ने बहुत की मेहरबानी हर तरफ़
अजब पुर लुत्फ़ मंज़र देखता रहता हूं बारिश में बदन जलता है और मैं भीगता रहता हूँ बारिश में
दिल की कच्ची दीवारों को पानी की लहर काट गई पहली बारिश ही ने बरसात का कहर ढाया है मुझ पर
फ़ुर्क़त ए यार में इंसान हूं मैं या कि सहाब हर बरस आ के रुला जाती है बरसात मुझे