देश में होली की तैयारियां शुरू कर दी है, पर कहते है की असली होली तो गांवों में खेली जाती है.
बुंदेलखंड के गावों में आज भी होली से पहले चौक, चौराहो पर फाग गाने वालों की टोलियां घूंमने लगती है.
यहां पर फाल्गुल का महीना आते ही किसान के खेतों में फसल पक कर तैयार हो जाती है. और किसान खूशी से फाग गाते है.
फागुन (Phagun) का महीना आये और बुंदेलखंड की फिजा में फाग ना गूंजे ऐसा हो ही नहीं सकता.
बुंलेदखंड की होली की खाशियत है कि यहां पर एक ब्रज की मस्ती तो दूसरी ओर अबध की छेड़छाड़ एक साथ
बात 'फाग' की करें तो दरअसल 'फाग' एक बुंदेली राग (गीत) है. जिसे होली के समय गाया जाता है.
होली के बीच फाग का स्वर छिड़ते ही बुंदेलखंड में बूढ़े, बच्चे, जवान और महिलाएं झूमने लगती है.
फाग गायन बुंदेलखंड की एक अनूठी परंपरा है. जिसको यहां के निवासी यानी बुंदेली लोक निरंतर निभाते आ रहे है.
अधिकतर फाग गायक बताते है बुंदेलखंडी फाग में राम और कृष्ण के भाव पूर्ण गीत होते है. पर कुछ गीत प्रेम रस से भी भरे होते है.