केदारनाथ में 16 जून 2013 को बड़ी आपदा आई थी, जिसमें करीब पांच हजार लोग मारे गए थे. तब बादल फटने से भरी झील सैलाब बनकर केदारनाथ में प्रलय बन गई थी.
चार धाम यात्रा की परंपरा महान सुधारक आदि शंकराचार्य ने करीब 1200 साल पहले शुरू की थी. तब इसे छोटा चार धाम नाम से जाना जाता था.
शंकराचार्य ने 8 साल की उम्र में वेदों का ज्ञान हासिल किया. दक्षिण भारत के नंबूदरी ब्राह्मण कुल में वो जन्मे थे. इसी वंश के ब्राह्मण बद्रीनाथ मंदिर के रावल यानी पुजारी होते हैं. ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य की गद्दी पर यही होते हैं.
आदि शंकराचार्य भारत की चारों दिशाओं में चार पीठों की स्थापना की थी. इसमें गोवर्धन पुरी मठ यानी जगन्नाथ पुरी, शृंगेरी पीठ यानी रामेश्वरम्, शारदा मठ यानी द्वारिकापुरी और ज्योतिर्मठ यानी बद्रीनाथ धाम शामिल है.
चारधाम में यमुनोत्री यमुना नदी का और गंगोत्री गंगा नदी का उद्गम है. केदारनाथ भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में एक है. जबकि बद्रीनाथ में भगवान विष्णु ने ध्यान लगाया था.
कहा जाता है कि राजा भगीरथ की तपस्या के बाद मां गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं.गंगोत्री धाम 18वीं सदी में एक गोरखा कमांडर ने बनवाया था. यह भागीरथी घाटी में स्थित है.
केदारनाथ मंदिर 3583 मीटर की ऊंचाई पर पौराणिक शिला की संरचना है. केदारनाथ और बद्रीनाथ यात्रा मार्ग अब काफी सुगम हो गया. 10 मई को इसके कपाट खुल गए हैं.
केदारनाथ भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है. मान्यता है कि भगवान शिव ने कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद पांडवों से बचने के लिए एक बैल के रूप में शरण ली थी.
बद्रीनाथ धाम भगवान बद्री नारायण के स्वरूप में भगवान विष्णु के ध्यान योग मुद्रा से जुड़ा है. माना जाता है कि आदि शंकराचार्य को अलकनंदा नदी में भगवान बद्री नारायण की मूर्ति मिली और वहां मंदिर की स्थापना की गई. यह नीलकंठ शिखर के पास है.
चार धाम यात्रा के पहले पड़ाव में यमुनोत्री यात्रा हनुमान चट्टी से शुरू होती है, जो आधार शिविर है. इसका निर्माण 19वीं सदी में टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रताप शाह ने करवाया था.
पापों को धोने और आत्मा शुद्ध करने के लिए यमुना में डुबकी लगाने की परंपरा है. यमुनोत्री में अनुष्ठान के तौर पर गर्म पानी के झरने में चावल या आलू पकाते हैं इसे सूर्य कुंड के नाम से जाना जाता है. यहां प्राचीन शनि मंदिर और जानकी चट्टी भी है.
गंगोत्री चारधाम यात्रा का दूसरा पड़ाव है. उत्तरकाशी जिले में राजसी गढ़वाल हिमालय में स्थित है. गंगोत्री मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में अमर सिंह थापा ने करवाया था. जो एक गोरखा कमांडर थे. यह मंदिर भागीरथी नदी के तट पर है. गंगा नदी में स्नान के साथ हर शाम भागीरथी नदी के तट पर भव्य दिव्य आरती होती है. गोमुख ग्लेशियर भी देखने लायक है.
केदारनाथ धाम तीसरा पड़ाव है. जो रुद्रप्रयाग जिले में गढ़वाल हिमालय में है. भगवान शिव को समर्पित मंदिर के लिए केदारनाथ यात्रा गौरीकुंड से शुरू होती है. यह केदार गुंबद और केदार पर्वत से घिरा एक प्राचीन मंदिर है.
बद्रीनाथ उत्तराखंड के चमोली जिले में है. बद्रीनाथ यात्रा जोशीमठ शहर से शुरू होती है. इसका निर्माण 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने कराया था. बद्रीनाथ जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति और मोक्ष प्रदान करता है
पौराणिक स्थलों की यह कहानी धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों में उल्लेख पर आधारित है. इसके एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.