रामायण का जिक्र हो, तो भगवान राम के साथ रावण के नाम का भी जिक्र जरूर आता है. रावण लंका का राजा था और युद्ध में श्रीराम ने उसका वध किया था.
हर साल दशहरे के पर रावण के पुतले का दहन किया जाता है. आखिर रावण में ऐसी क्या बातें थी जो हर साल उसका पुतला दहन कर दशहरा मनाया जाता है. हम आपको सबसे पहले बता रहे हैं रावण के जन्म की कहानी.
लंकापति रावण महाज्ञानी पंडित था. रावण के अंदर सत्व, रज और तम तीनों ही गुण विद्मान थे. उसमे तमोगुण सबसे अधिक और सत्व गुण सबसे कम था.
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, रावण पुलत्स्य मुनि के पुत्र महर्षि विश्रवा और राक्षसी कैकसी का पुत्र था. रावण का जन्म 3 श्राप के कारण हुआ था. एक श्राप सनकादिक बाल ब्राह्मणों ने दिया था. ऐसे ही अलग-अलग जगह 2 श्राप का जिक्र भी मिलता है.
रावण के जन्म की कहानी शुरू होती है समुद्र मंथन से. समुद्र मंथन से निकले अमृत को पीकर जब देवतागण राक्षसगणों से अधिक शक्तिशाली हो गए तो राक्षसों को चिंता होने लगी कि ऐसे तो समूचे कुल का नाश हो जाएगा.
राक्षसों के बीच में इस बात पर सहमति बनी की राक्षसों की पुत्री ऐसे शक्तिशाली पुरुष को जन्म दे जो ब्राह्मण भी हो और राक्षसों के कहने पर देवताओं के साथ युद्ध भी कर सके.
यही विचार मन में लिए राक्षस राज सुमाली अपनी बेटी कैकसी के पास पहुंचा और कहा, 'पुत्री मेरे भय के कारण कोई सुयोग्य तुम्हारा हाथ मांगने मेरे पास नहीं आता.मैं चाहता हूं कि तुम राक्षस वंश के कल्याण के लिए महापराक्रमी ऋषि विश्रवा से विवाह करो और एक पराक्रमी बालक को जन्म दो।'
कैकसी ने अपने पिता की बात मान ली. पिता से आज्ञा लेकर वह ऋषि विश्रवा से मिलने के लिए पालात लोक से पृथ्वी लोक को निकलीं और ऋषि विश्रवा के आश्रम पहुंची. कैकसी ने ऋषि विश्रवा को चरण स्पर्श किया और अपने मन की इच्छा बताई.
कैकसी की बातों को सुनकर ऋषि विश्रवा उससे विवाह करने को तैयार हो गए, लेकिन कैकसी से कहा कि, तुम शाम की बेला में मेरे पास आई हो. इसलिए मेरे पुत्र क्रूर, बुरे कर्म करने वाले राक्षसों जैसे होंगे. मेरा तीसरा पुत्र मेरी तरह धर्मात्मा होगा. इस तरह ऋषि विश्रवा और कैकसी ने रावण, कुंभकर्ण, पुत्री सूपर्णखा का जन्म दिया. सबसे आखिर बेटे के रूप में धर्मात्मा विभीषण का जन्म हुआ.
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