भगीरथ कितने वर्ष तपस्या कर गंगा को धरती पर लाए, शिव की जटा से निकली कितनी धाराएं

May 15, 2024

गंगा दशहरा

भारत में गंगा दशहरा बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है. यह मां गंगा के धरती पर अवतरण का दिन माना जाता है.

गंगा पावन नदी

हिंदू धर्म में मां गंगा को बेहद पवित्र नदी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस नदी में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं. आप गंगा दशहरा की पौराणिक कथा पढ़ सकते है.

राजा भागीरथ को गंगा को धरती पर लाने का श्रेय

गंगा नदी को धरती पर लाने का श्रेय अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश के राजा भागीरथ को जाता है. इसलिए गंगा को भागीरथी भी कहते हैं. क्या आपको पता है कि भागीरथ ने गंगा को धरती पर लाने की क्यों ठानी थी.

देवराज इंद्र ने पकड़ा घोड़ा

एक बार राजा सगर के अश्वमेध घोड़े को देवराज इंद्र ने पकड़ लिया और उसे कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया. इस बात की खबर राजा सगर को लगी.

अश्वमेध घोड़ा

उन्होंने अपने 60 हजार पुत्रों को अश्वमेध घोड़े को ढूंढ़ लाने का आदेश दिया. सगर के 60 हजार पुत्र जब कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे, तब वह ध्यान में लीन थे.

मुनि ने किया भस्म

सभी ने आश्रम पर हमला कर दिया. इससे कपिल मुनि का ध्यान भंग हो गया और वह क्रोधित हो गए. कपिल मुनि ने गुस्से में अपनी आंखें खोलीं और उनमें से तेज अग्नि निकली, जिसमें जलकर सगर के 60 हजार पुत्रों भस्म हो गए

अंशुमान को ढूंढने के लिए भेजा

बहुत समय तक पुत्रों की खबर नहीं मिलने पर सगर ने अपने पौत्र अंशुमान को ढूंढने के लिए भेजा.अंशुमान उन्हें खोजते-खोजते कपिल मुनि के आश्रम के पास पहुंचा. उसे देखकर अंशुमान दंग रह गया.

कपिल मुनि का कोप

अंशुमान ने राजा सगर कोबताया कि यह सब कपिल मुनि के कोप से हुआ है. सगर के 60 हजार पुत्रों की आत्मा को तभी मुक्ति मिलेगी, जब उनका गंगा के पानी से तर्पण होगा.

60 हजार पुत्रों का तर्पण

अंशुमान ने राजा सगर के सभी 60 हजार पुत्रों के तर्पण के लिए गंगा को धरती पर लाने के लिए तप किया पर सफल नहीं हुए. अशुमान के पुत्र दिलीप ने अपने वंश को आगे बढ़ाया और उनके एक बेटा हुआ, जिसका नाम भागीरथ रखा गया.

राजा दिलीप ने भी कोशिश

भागीरथ के बड़े होने पर राजा दिलीप भी ने भी गंगा को लाने की कोशिश की पर सफल और वे भी अपने पूर्वजों को मुक्ति नहीं दिला पाए. इसके बाद राजा भागीरथ ने प्रण लिया कि वह गंगा को धरती पर लाकर ही रहेंगे..

कठोर तपस्या

भागीरथ हिमालय में पहुंच गए और गंगा को धरती पर लाने के लिए कठोर तपस्या की. उनके तप से गंगा देवी प्रसन्न हो गईं और उन्होंने धरती पर अवतरित होने की हामी भर दी.

अंगूठे पर खड़े होकर तपस्या

राजा भागीरथ ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए एक वर्ष तक अंगूठे पर खड़े होकर तपस्या की. शिवजी भागीरथ से प्रसन्न हुए. तब ब्रह्माजी ने अपने कमंडल से गंगा की धारा छोड़ी और शिव ने अपनी जटाओं में उसे समेट लिया.

शिव की जटा से निकली गंगा

कुछ दिनों बाद शिव ने अपनी एक जटा खोली और फिर गंगा का धरती पर अवतरण हुआ. जिस दिन गंगा की पहली धारा धरती पर आई, वो ज्येष्ठ शुक्ल दशमी का दिन था. इसलिए इसे गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है..

नहीं मिला मार्ग

गंगा को वर्षों तक शिव-जटाओं से निकलने का मार्ग नहीं मिला.जब गंगा शिवजटाओं में समाकर रह गई तो भगीरथ ने फिर से तपस्या की. तब भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर गंगा को बिंदुसर की ओर छोड़ा.

सात धाराओं में प्रवाहित

गंगा यहां से सात धाराओं के रूप में प्रवाहित हुईं. ह्लादिनी, पावनी और नलिनी पूर्व दिशा की ओर प्रवाहित हुई. सुचक्षु, सीता और महानदी सिंधु पश्चिम की प्रवाहमान होने लगी. सातवीं धारा ने राजा भगीरथ का अनुसरण किया.

राम से लगभग 14वीं पीढ़ी पूर्व भागीरथ हुए

ऐसा कहा जाता है कि ब्रह्मा से लगभव 23वीं पीढी बाद राम से लगभग 14वीं पीढ़ी पूर्व भागीरथ हुए. हिमालय के एक क्षेत्र विशेष को देवलोक कहा जाता है.

महादेव की पत्नी

ऐसा भी कहते हां ब्रह्मचाहिणी गंगा के द्वारा किएक स्पर्श से ही महादेव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया.भगवान विष्णु के प्रसाद के रूप में शिव ने गंगा को पत्नी के रूप में स्वीकार किया.

कार्तिकेय के लिए गर्भ

ऐसी भी कथा है कि शंकर और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का गर्भ भी देवी गंगा ने ही धारण किया था.स्कंदपुराण के अनुसार कार्तिकेय की सौतेली मां हैं.

डिस्क्लेमर

स्पष्ट कर दें कि यह AI द्वारा निर्मित महज काल्पनिक फोटो हैं, जिनको बॉट ने कमांड के आधार पर तैयार किया है.

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