आज हम आपको बताएंगे ऐसा योद्धा के बारे में जो कर्ण,अर्जुन, भीष्म और द्रोण जैसे शूरवीरों को पल भर में मात देकर महाभारत का युद्ध आसानी से जीत सकता था.
द्वापर काल में माता मोरवी के गर्भ से एक संतान की उत्पति हुई थी, जिन्हे बर्बरीक के नाम से जाना जाता था. घटोत्कच पुत्र बर्बरीक के दादा महाबली भीम थे.
बर्बरीक छोटी उम्र से ही तपस्या में रुचि रखता था. इसके चलते महादेव ने उन्हें तीनों लोक पर विजय दिलाने वाले तीन बाण दिए.
बर्बरीक की माता ने इन्हे हमेशा हारे हुए व्यक्ति का साथ देना सिखाया था . जिसका भगवान कृष्ण और पांडवों को मालूम था.
महाभारत युद्ध की घोषणा के बाद बर्बरीक भी निष्पक्ष होकर हारे हुए का साथ देने रण क्षेत्र में चल पड़े थे. तब ब्राह्मण वेश बनाकर कृष्ण ने उनसे शीश का दान मांग लिया ताकि वह युद्ध में भाग ना ले सके और पाण्डव की विजय में कोई रुकावट पैदा न हो.
बर्बरीक ने भी खुशी- खुशी अपने शीश का दान दे दिया था, जिसे भगवान कृष्ण ने उन्हे कलयुग में अवतार के रूप में पूजे जाने का वरदान दिया और साथ ही पूरे युद्ध तक उनके शीश को भी जीवित रहने का वरदान दिया.
युद्ध में जब बर्बरीक के भाग लेने की बात चली तो कौरवों और पांडवों में हड़कंप मच गया था, क्योंकि बर्बरीक को इस धरती पर महादेव के आशीर्वाद के चलते मात नहीं दे सकता था.
युद्ध समाप्ति के बाद उनके शीश को राजस्थान में स्थपित किया गया, इस क्षेत्र को वर्तमान में खाटू धाम के नाम से जाना जाता है.
कलयुग के अवतार के रूप में पूजे जाने वाले खाटू श्याम के दरबार में रोजाना लाखों श्रद्धालु पहुंचते है, और हर फाल्गुन की चांदनी ग्यारस के अवसर पर मेले का आयोजन होता है.
वहीं कलयुग के भगवान श्याम ने जहां शीश का दान दिया था, उसे आज बीड बबरान धाम के नाम से जाना जाता है.