दिवाली का पावन पर्व 12 नवंबर को है. हर साल की तरह इस साल भी बड़े ही धूम-धाम से इस त्यौहार को मनाया जाएगा.
दिवाली को लेकर हर किसी ने तैयारी शुरू कर दी है. इस दिन लोग लाखों रुपये के पटाखें जलाते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में पटाखों की एंट्री कैसे हुई. आइये बताते हैं.
इतिहासकारों की माने तो पता चलता है कि दुनिया को पटाखों से रूबरू कराने वाला चीन है. छठी से नौवीं शताब्दी के बीच टांग वंश के समय चीन में ही बारूद की खोज हुई.
इतिहासकारों की माने, तो लोग बांस में आग लगाते थे और इसमें मौजूद एयर पॉकेट्स फूटने लगते थे. इससे आवाज आती और इस तरफ पटाखों का शौक बिना पटाखों के पूरा हो जाता.
इसके बाद चीन के एक शख्स ने बारूद में पोटेशियम नाइट्रेट, सल्फर और चारकोल मिलाकर इसे बांस के खोल में भरकर जलाया. इससे काफी धमाकेदार विस्फोट हुआ.
धीरे धीरे ये ट्रेंड आगे बढ़ने लगा और बांस की जगह लोग कागज़ का इस्तेमाल करने लगे. इस तरीके से पटाखों का चलन लोगों के बीच में आया
पानीपत की पहली लड़ाई 1526 के आसपास हुई थी. इस दौरान मुग़ल अपने साथ पटाखें लेकर आये थे और युद्धों में बारूद और तोप का इस्तेमाल कर इब्राहिम लोधी को हराया था.
भारत में बारूद आते ही आतिशबाजी भी शुरू होने लगी. शादी समारोह और उत्सवों में आतिशबाजी करने का चलन अकबर के समय शुरू हुआ था.