एक सत्संग में प्रेमानंद जी महाराज से एक भक्त ने सास-बहु के घरेलू झगड़े पर प्रश्न किया.
जिस पर प्रेमानंद जी महाराज ने कहा कि सास को भोजन दीजिए. सेवा करिए. कुछ भी करिए पर जब कोई मिलने आएगा तो वो बुराई करेंगी. ये एक माया है.
जब आपके कान में इस तरह की बुराई पड़ेगी तब आपको बहुत बुरा लगेगा. आपके मन में आएगा कि मैं तो इतनी सेवा करती हूं.
आप सोचेंगी कपड़े धोती हूं. भोजन करवाती हूं फिर भी मेरी बुराई की जाती है. आपके ऐसा सोचते ही आप धर्म से गिर जाएंगी.
सास की सेवा अगर आप करते हैं और तब भी आपकी निंदा होती है तो उन्हें आप अपने हाल पर ही छोड़ दें.
आप यही सोचें कि आपने अपना धर्म किया है. सामने वाला जो भी करे वह उसका कर्म है.
प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि यही सोचना अध्यात्म कहलाता है.
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