आप लोगों ने महाभारत सुनी या पढ़ी जरूर होगी. भीष्म पितामह महाभारत के मुख्य पात्रों में से एक है.
भीष्म पितामह केवल एक मात्र ऐसे योध्दा थे जिन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान है. भीष्म पितामह पूरे 58 दिनों तक सरसैया यानी वाणों की सेज पर लेटे रहे थे.
कथाओं के अनुसार, भीष्म राजा शांतनु व गंगा की आठवीं संतान थे. बचपन में उनका नाम देवव्रत था.
अर्जुन के लिए भी भीष्म पितामह को हराना आसान नहीं था, अगर अर्जुन को श्री कृष्ण सलाह न देते तो हराना संभव नहीं था.
महाभारत युद्ध के दौरान भीष्म पितामाह को कौरवों की ओर से प्रधान सेनापति बनाया गया है.
भीष्म पितामह ने सपथ ली थी कि जब युद्ध में अगर कोई स्त्री युद्ध में मेरे सामने आ जाए तो मैं शस्त्र रख दूंगा.
जिसके बाद श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन ने शिखंडी को अपने आगे खड़ा कर लिया. इसलिए भीष्म पितामह को शस्त्र छोड़ने पड़े.
भीष्म पितामह के शस्त्र छोड़ते ही अर्जुन ने उनपर तीरों की बरसात कर दी, जिसके बाद उन्ही के कहने पर अर्जुन ने उन्हे सरसैया पर लेटा दिया
58 दिनों तक घोर पीड़ा सहने के बाद भी भीष्म पितामह ने अपने प्राण को रोक रखा था और सूर्य उत्तरायण के दिन अपने शरीर का त्याग कर दिया था.