स्कूल में गदर एक प्रेम कथा, प्रस्थानम,मैडम चीफ मिनिस्टर, अनवर, ऑलवेज कभी कभी और शतरंज के खिलाड़ी जैसी 12 बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है.
फ्रेंच शैली में बनी इसकी इमारत और क्लास किलों के महल का अहसास कराती हैं. यहां गर्मी में हमेशा ठंड और ठंड में गर्मी का अहसास होता है.
ला मार्टिनियर कॉलेज यहां 10 फुटबॉल ग्राउंड, 8 हॉकी मैदान, दो बॉस्केटबॉल, दो क्रिकेट और अन्य खेलों के मैदान हैं. जूडो, ताइक्वांडो से लेकर बॉक्सिंग तक का कोर्ट है.
1947 से पहले करीब 100 सालों तक यहां सिर्फ अंग्रेजों के बच्चे पढ़ते थे. जब 1857 का स्वतंत्रता संग्राम हुआ तो स्कूल के बच्चों को अंग्रेजों ने भारतीय सैनिकों के खिलाफ युद्ध में झोंका गया.
ला मार्टिनियर कॉलेज दुनिया का इकलौता ऐसा स्कूल है जिसे शाही युद्ध सम्मान से नवाजा गया.
ला मार्टिनियर स्कूल की लखनऊ-कोलकाता के बाद फ्रांस में ब्रांच है. ला मार्टिनियर बॉयज स्कूल 1845 में फ्रैंच अफसर क्लाउड मार्टिन की संपत्ति से बनवाया गया.
क्लाउड मार्टिन फ्रांस की हार के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी में आर्मी अफसर बना. फिर अवध के नवाब आसिफ उद्दौला का खासमखास बन गया.
क्लाउड मार्टिन ने प्रेमिका कान्स्टेंटिया के नाम पर ला मार्टिनियर कॉलेज बनवाने का ऐलान किया. प्यार में नाकाम मार्टिन ने शादी नहीं की और माशूका के लिए ताजमहल की जगह स्कूल-कॉलेज बनवाया.
आसिफ उद्दौला की नौकरी करते वो मार्टिन इतना अमीर हो गया था कि उसने खुद नवाब को ही कर्ज दे रखा था. ये तीनों ही स्कूल क्लाउड मार्टिन ने ही बनवाए.
स्कूल में हॉर्स राइडिंग क्लब, चर्च, मंदिर-मस्जिद जिमखाना से लेकर सारी सुविधाएं हैं. कॉलेज में पुरानी तोप, और सुरंग भी हैं, जो लखनऊ के एक से दूसरे छोर में जाकर खुलती हैं.
ला मार्टिनियर गर्ल्स कॉलेज भी 1869 में बना. इस इंटर कॉलेज में 5 साल से 18 साल तक के बच्चे पढ़ाई करते हैं.
क्लाउड मार्टिन ने 1 जनवरी 1800 की वसीयत में अपनी संपत्ति ला मार्टिनियर के 3 स्कूलों की स्थापना के लिए दे दी. लेकिन वसीयत पर विवाद से यह 1845 में तैयार हुआ.
कॉलेज संस्थापक मार्टिन को घर के तहखाने में एक विशेष तिजोरी में नमक का लेप लगा दफनाया गया. इसे ईस्ट इंडिया कंपनी का ताजमहल की खूबसूरती का जवाब भी कहा जाता है.
जॉन न्यूमार्च 1845 में पहले प्रिंसिपल थे.ला मार्टिनियर लखनऊ 1859 में महज 148 छात्र थे, लेकिन धीरे-धीरे प्रतापगढ़, मिर्ज़ापुर, गोरखपुर, कानपुर, इलाहाबाद और इटावा से बोर्डिंग के लिए बच्चे आने लगे.
1869 में ला मार्टिनियर गर्ल्स स्कूल यह 1871 में खुर्शीद मंजिल के परिसर में संचालित होने लगा. अवध क्षेत्र के अमीरों और रियासतों के मालिकों के बच्चे यहां पढ़ने आने लगे.
ला मार्टीनियर में 1947 के उर्दू अनिवार्य विषय नहीं रहा और इसकी जगह हिन्दी ने ले ली. आजादी के बाद भी ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों के बच्चे यहां पढ़े. द्वितीय विश्व युद्ध में ला मार्टीनियर कोलकाता के बच्चे यहां भेजे गए.
लखनऊ में 1960, 1962 और 1971 में आई भीषण बाढ़ से स्कूल में पानी भर गया, लिहाजा 1973-74 में एक बांध का निर्माण कराया गया.
1976 में यह स्कूल आईसीएसई बोर्ड से संबद्ध हुआ. 1995 में स्कूल के 150 साल होने पर बड़ा समारोह और स्टांप पेपर जारी हुआ. अब यहां हजारों छात्र पढ़ते हैं और एडमिशन पाना ऑक्सफोर्ड में प्रवेश से कम नहीं है.