यूपी के इस जिले में लंका मीनार, कुतुबमीनार के बाद सबसे ऊंची, दिखता है रावण का पूरा खानदान

Pooja Singh
Sep 24, 2024

लंका मीनार

दुनिया में एक से बढ़कर एक अजीबोगरीब मान्यताएं हैं. कई तो ऐसी हैं जिन्हें जानकर सिर चकरा जाता है. हम बात कर रहे हैं लंका मीनार की, जो रावण को समर्पित है.

रावण की भूमिका

कहा जाता है कि दिल्ली के कुतुबमीनार के बाद यही सबसे ऊंची मीनार है. इसका निर्माण कराने वाला शख्स रामलीला में रावण की भूमिका निभाता था.

क्या है मान्यता?

उसे रावण से इतना लगाव था कि उसने लंका नाम से ही मीनार का निर्माण करवा दिया. ऐसा कहा जाता है कि इस मीनार पर भाई-बहन एक साथ चढ़कर ऊपर जा नहीं जा सकते.

टूरिस्ट स्पॉट

जालौन में बुंदेलखंड के एंट्री गेट कालपी स्थित इस मीनार के अंदर रावण के पूरे परिवार के चित्र बनाए गए हैं. वैसे मीनार ज्यादा बड़ी नहीं है, लेकिन अपनी अजीब मान्यता की वजह से ये जगह एक टूरिस्ट स्पॉट में बदल चुकी है.

कब बनी मीनार?

लंका मीनार के निर्माण की कहानी बड़ी दिलचस्प है. ये मीनार 1857 में मथुरा प्रसाद नाम के शख्स ने बनवाई थी. मथुरा प्रसाद ने रावण की याद में इस मीनार का निर्माण करवाया था. इसलिए इसका नाम ‘लंका मीनार’ रखा गया.

मथुरा प्रसाद

मथुरा प्रसाद एक कलाकर के रूप में ज्यादातर रावण का किरदार करते थे. ऐसा कहा जाता है कि रावण की भूमिका ने उनपर इतनी बड़ी छाप छोड़ी कि उन्होंने रावण की याद में एक मीनार बनवा डाली.

सालों का समय

लंका मीनार को बनाने में 20 साल का समय लगा था. इसकी ऊंचाई 210 फीट है. इस मीनार को बनाने में उस समय करीब 2 लाख रुपये का खर्चा आया था.

लगी हैं मूर्तियां

यहां कुंभकर्ण और मेघनाद की बड़ी मूर्तियां भी लगाई गई हैं. कुंभकर्ण की मूर्ति करीब 100 फीट तो वहीं मेघनाद की मूर्ति 65 फीट की है. यहां भगवान शिव के साथ-साथ चित्रगुप्त की मूर्ति को भी देख सकते हैं.

अजीब मान्यता

180 फीट ऊंची नाग देवता की भी मूर्ति भी यहां स्थापित है, क्योंकि रावण शिव भक्त था इसलिए मंदिर होने की ये भी एक वजह हो सकती है. लंका मीनार को लेकर एक अजीब मान्यता ये भी है.

सात परिक्रमा

मान्यता है कि इस मीनार में भाई-बहन एक-साथ ऊपर नहीं जा सकते हैं. असल में मीनार के ऊपर जाने के लिए 7 परिक्रमाओं को पूरा करना पड़ता है, जिसे भाई-बहन नहीं कर सकते.

जाने की मनाही

मान्यता है कि इस मीनार के ऊपर एक-साथ भाई-बहनों का जाना मना है. इस मान्यता को आप भी कुछ कह लें, लेकिन स्थानीय लोग सालों से इसका पालन कर रहे हैं.

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