माता कुंती और सूर्य देव की संतान कर्ण को जन्म से ही कवच और कुंडल प्राप्त था.
कथाओं अनुसार, कवच और कुंडल होने के कारण कर्ण को दुनिया की कोई ताकत हरा नहीं सकती थी.
महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ने वाले कर्ण को कवच और कुंडल के साथ हरा पाना पांडवों के लिए असंभव हो रहा था.
कर्ण को दान देने के लिए भी जाना जाता है. उसकी यही दान देने की आदत उसकी मृत्यु का कारण बन गई.
महाभारत के युद्ध के समय पांडवों की जीत सुनिश्चित करने के लिए इंद्र ने कर्ण से दान में उसका कवच कुंडल ही मांग लिया
कर्ण ने अपना दिव्य कवच और कुंडल इंद्र को दान भी कर दिया. इस तरह युद्ध में अर्जुन ने कर्ण का वध किया.
कवच और कुंडल से जुड़ी आगे की कथा ये मानी जाती है कि इंद्रदेव ने कर्ण के दिव्य कवच कुंडल को समुद्र के किनारे ही एक स्थान पर छिपाया था.
दरअसल, ये कवच और कुंडल दिव्य शक्तियों से युक्त थे ऐसे में इसे गलत तरीके से इस्तेमाल न हो इसका ध्यान रखना था. इसकी सुरक्षा में सूर्य देव व समुद्र देव लग गए.
कहते हैं कि पुरी के पास ही कोणार्क में कवच और कुंडल को छुपाया गया था जो आज भी मौजूद है. कहते हैं कि जो भी इसे हासिल कर लेगा वो शक्तिशाली हो जाएगा.
यह जानकारी सिर्फ मान्यताओं, धार्मिक ग्रंथों और माध्यमों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को मानने से पहले अपने विशेषज्ञ की सलाह ले लें. ये सभी एआई से निकाले गए हैं,