जहां बिजली और मोबाइल के बिना आप मिनट भर नहीं रह सकते. ऐसे में एक ऐसी जगह है, जहां लोग अभी भी बिजली के उपकरण और मोबाइल यूज नहीं करते.
यूपी में वृंदावन के पास ऐसा ही एक गांव है, जहां जाकर आपको लगेगा कि आप पुराने जमाने में हैं. इस अनोखे गांव का नाम है टटिया.
टटिया गांव के सभी लोग बेहद पुराने दौर की तरह अभी भी मस्त होकर जिंदगी जी रहे हैं. यहां मोबाइल और AC तो छोड़िए लोगों के घरों में पंखे तक नहीं है.
यहां अभी भी डोरी खींच कर चलाने वाला पंखा है. बिजली का कोई सामान नहीं है. गांव में कोई मोबाइल लेकर भी नहीं जाता है. यहां मोबाइल ले जाना निषेध है.
रात में रोशनी के लिए लोग लैंप और डिबरी जलाते हैं, क्योंकि यहां बिजली के बल्ब तक नहीं जलाए जाते हैं. यहां पानी पीने के लिए भी कुएं का इस्तेमाल होता है.
टटिया गांव में सभी औरतें सिर ढक कर रहती हैं और हर वक्त पूजा-पाठ में लोग रमे रहते हैं. इस इलाके में लोग दिन रात भजन कीर्तन में डूबे रहते हैं.
कहते हैं कि जब वृंदावन के सातवें आचार्य ललित किशोरी देव जी ने निधिवन छोड़ा तो वे इस जगह पर ध्यान करने के लिए बैठ गए. यहां खुला जंगल था.
शिकारियों और जानवरों से बचाने के लिए भक्तों ने आस-पास बांस के डंडों से उनके लिए छत और आस-पास घेरा बना दिया.
बांस की छड़ियों को इस इलाके में टटिया कहा जाता है. इसलिए इसका नाम टटिया गांव पड़ा. यहां कदम-कदम पर आपको भक्ति में लीन साधु संत मिल जाएंगे.
यहां भगवान की आरती नहीं बल्कि राधा रानी और श्रीकृष्ण के गीत गाए जाते हैं. यहां नीम, कदंब, पीपल के पेड़ हैं जिनके पत्तों पर भी राधा नाम उभरा हुआ दिखता है.
यहां के साधु संत दक्षिणा नहीं लेते, उनके लिए गांव के घरों से भोजन भेजा जाता है. तकनीक के इस दौर में ये अनोखा गांव भक्ति और साधना का महत्व समझाता है.