भगदत्त प्राग्ज्योतिषपुर का राजा और नरकासुर का बड़ा बेटा था.श्रीकृष्ण ने नरकासुर को मारकर उसके बेटे भगदत्त को राजा बनाया था.
कृष्ण के हाथों नरकासुर मारा गया. कृष्ण ने उसकी कैद से 16 हजार रानियों का उद्धार किया और उन्हें अपनाया.
युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के वक्त भगदत्त अर्जुन से 8 दिनों तक लड़ा और फिर उसने युधिष्ठिर की अधीनता मान ली.
द्रोण पर्व के अनुसार, महाभारत युद्ध में भगदत्त कौरव पक्ष से लड़ा था. लेकिन वो और उसका हाथी सुप्रतीक अर्जुन के हाथों मारे गए.
जब भगदत्त और अर्जुन का भीषण युद्ध चल रहा था, तब अर्जुन ने भगदत्त के धनुष को काटकर उसके बाणों को भी छिन्न भिन्न कर दिया. उसके शरीर में 72 घाव हो गए.
फिर भगदत्त ने ब्रह्मास्त्र जैसा अमोघ हथियार वैष्णव अस्त्र अर्जुन पर छोड़ा.इससे अर्जुन समेत पूरी पांडव सेना का विनाश निश्चित था.
तब भगवान श्रीकृष्ण स्वयं वैष्णव अस्त्र के सामने आ गए और अपने सीने पर उसका प्रहार सह लिया.
फिर भगवान श्रीकृष्ण के आदेश पर अर्जुन ने उस पर बाणों की वर्षा कर दी.
भगदत्त के हाथी का अंत भी अर्जुन ने किया. भगदत्त के पराक्रमी हाथी सुप्रतीक के कुम्भस्थल में एक भयानक बाण का प्रहार किया और वो मर गया.
भगदत्त काफी बूढ़ा हो चुका था, लेकिन उसे अमर और अपराजित होने का आशीर्वाद था. उसने अपनी पलकें खोली रखने के लिए पलकों को कपड़े की पट्टी से बांध रखा था.
अर्जुन ने बाण मारकर भगदत्त सिर की पट्टी खोल दी. पट्टी हटते ही भगदत्त की आंखें बंद हो गईं. फिर अर्ध चंद्राकार बाण चलाकर अर्जुन ने उसका सिर अलग कर दिया. सोने के आभूषणों से सुसज्जित विशालकाय हाथी से भगदत्त जमीन पर गिरा और मारा गया.
पौराणिक पात्रों की यह कहानी धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों में किए गए उल्लेख पर आधारित है. इसके एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.