प्रकाश झा फिल्ममेकर बनने से पहले पेंटर चाहते थे.

प्रकाश झा ने अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी में चल रही बैचलर की पढ़ाई छोड़ दिया. इसके बाद उन्होंने पुणे में भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान या एफटीआईआई में एडमिशन लिया.

प्रकाश झा ने अपने वृत्तचित्र, फेसेस आफ्टर स्टॉर्म के लिए साल 1984 के लिए पहला राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता.

प्रकाश झा बॉलीवुड के बेहतरीन और टैलेंटेड डायरेक्टर-प्रोड्यूसर में शुमार हैं. उनकी अलग ही पहचान है वो हमेशा अपनी फिल्मों में एक्सपेरीमेंट करते हैं. अपहरण, गंगाजल और राजनीति जैसी फिल्में दर्शकों को मोटिवेट करती हैं.

एक समय था जब प्रकाश झा के पास पैसों की दिक्कत थी. तब उनके पिता भी उनसे नाराज थे. उनके पिता ने 5 साल तक प्रकाश से बात नहीं की थी.

एक इंटरव्यू में प्रकाश झा ने अपने स्ट्रगल के बारे में बताया था. उन्होंने कहा कि वह घर से मात्र 300 रुपये लेकर सपना पूरा करने निकल पड़े थे. उन्हें कई बार भूखा रहना पड़ा. आज प्रकाश झा अपने आप में बहुत बड़ा नाम हैं. उन्होंने अपनी मेहनत से अपनी किस्मत लिखी.

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