सनातन धर्म के ग्रंथों में लिखा गया है कि जब भगवान राम की सेना ने सागर सेतु बांध लिया, तब राम जी ने हनुमान को उसकी देखभाल की पूरी जिम्मेदारी सौंपी.
एक शाम हनुमान जी राम के ध्यान में मग्न थे, तभी सूर्य पुत्र शनि ने अपना काला कुरूप चेहरा बनाकर क्रोधपूर्वक कहा- सुना है, तुम बहुत बलशाली हो, उठो, आंखें खोलो और मुझसे युद्ध करो.
हनुमान जी ने विनम्रतापूर्वक कहा- आप मेरी पूजा में बाधा मत बनिए, मैं युद्ध नहीं करना चाहता. लेकिन शनि लड़ने पर उतर आए. तब हनुमान जी ने शनि को अपनी पूंछ में कस दिया.
काफी जोर लगाने पर भी शनि उस बंधन से मुक्त नहीं हो सके और दर्द से तड़पने लगे. हारकर शनिदेव ने हनुमान जी से प्रार्थना की कि मुझे बंधन मुक्त कर दीजिए मैं अपने अपराध की सजा पा चुका हूं.
इस पर हनुमान जी बोले तुम मुझे वचन दो कि श्रीराम के भक्त को कभी परेशान नहीं करोगे. शनि ने राम भक्त को परेशान न करने का वचन दिया. हनुमान ने शनिदेव को छोड़ दिया.
मान्यता है कि हनुमान जी ने शनिदेव को तेल दिया जिसे लगाकर शनिदेव की पीड़ा मिट गई. उसी दिन से शनिदेव को तेल चढ़ता है, जिससे उनकी पीड़ा शांत हो जाती है और वे प्रसन्न होकर इच्छा पूरी करते हैं.
शनि को तेल अर्पित करने से पहले लोग अक्सर ये गलती करते हैं. शनि देव की प्रतिमा को तेल चढ़ाने से पहले तेल में अपना चेहरा अवश्य देखें.
ऐसा करने पर शनि के दोषों से मुक्ति मिलती है. धन संबंधी कार्यों में आ रही रुकावटें दूर हो जाती हैं और सुख-समृद्धि बनी रहती है.