डांडिया और गरबा गुजरात के लोक नृत्य का सीधा कनेक्शन मां दुर्गा से है. मान्यता है नवरात्रि में इस नृत्य साधना से भक्त देवी को प्रसन्न करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
डांडिया नृत्य में इस्तेमाल होने वाली रंगीन छड़ियां मां दुर्गा की तलवार का प्रतीक मानी जाती हैं. इसलिए इसे तलवार नृत्य भी कहा जाता है. इसमें महिलाएं घाघरा, चोली और ओढ़नी पहनती हैं. पुरुष पारंपरिक धोती- कुर्ता पहनते हैं.
इस नृत्य में बजने वाले वाद्ययंत्रों की ध्वनियां युद्ध के मैदान में सुनाई देने वाली धातु की झनकार की याद दिलाती हैं. डांडिया नृत्य देवी और राक्षस के बीच हुए युद्ध को फिर से बनाने का एक सुंदर तरीका है.
गरबा या डांडिया नृत्य अलग-अलग तरीके से खेला जाता है. डांडिया नृत्य में जब भक्त डांडिया खेलते है जो इससे देवी की आकृति का ध्यान किया जाता है. जो समृद्धि का प्रतीक माना जाता है.
डांडिया या गरबा नृत्य से पहले देवी की पूजा होती है. इसके बाद देवी की तस्वीर या प्रतिमा के सामने मिट्टी के कलश में छेद करके दीप जलाया जाता है. फिर उसमें चांदी का सिक्का भी डालते हैं.
इसी दीप की हल्की रोशनी में गरबा या डांडिया नृत्य को भक्त करते है. कहा जाता है कि डांडिया नृत्य के समय डांडिया लड़ने से जो आवाज उत्पन्न होती है. उससे पॉजिटिव एनर्जी आती है.
जीवन की नकारात्मकता भी समाप्त हो जाती है. ठीक ऐसे में गरबा नृत्य के दौरान महिलाएं तीन तालियों का प्रयोग करती है, जिससे सकारात्मक ऊर्जा मिलती है.
नवरात्रि में डांडिया या गरबा खेलना कोई नई परम्परा नहीं है. पौराणिक समय से ही नवरात्र के नौ दिनों में इसे खेला जाता है.
इसका इतिहास राजस्थान और गुजरात से जुड़ा है, लेकिन देवी के भक्त पूरे देश में है इसलिए नवरात्रि में नृत्य का आयोजन सामूहिक तौर पर देशभर में होता है.
यहां बताई गई सारी बातें धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं. इसकी विषय सामग्री और एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.