कभी-कभी सबकुछ होकर भी सबकुछ व्यर्थ ही लगता है. महाभारत में भी एक पात्र थे धृतराष्ट्र जिनके पास राजपाट पत्नी पुत्र सबकुछ था लेकिन सब होकर उनके लिए सब शुन्य था.
धृतराष्ट्र राजा होकर भी एक भी ऐसा निर्णय नहीं ले सके जिसका सकारात्मक प्रभाव हो. धृतराष्ट्र की कुंठा का एक सबसे बड़ा कारण उनका अंधा होना भी था.
वो नेत्रहीन थे और इसी कारण वो हमेशा ही इस दुख में जलकर जीवन काट रहे थे. प्रश्न ये है कि आखिर उनके जन्म से नेत्रहीन होने का कारण क्या था. दरअसल, इसका पिछले जन्म से नाता है.
पौराणिक कहानी कुछ इस तरह है- अपने पिछले जन्म में धृतराष्ट्र एक बहुत दुष्ट राजा हुआ करते थे. एक दिन नदी में एक हंस अपने बच्चों संग विचरण कर रहा था जिस पर धृतराष्ट्र की नजर पड़ी.
धृतराष्ट्र ने आदेश किया कि उस हंस की आंखें फोड़ डाली जाएं और उसके बच्चों का भी अंत कर दिया जाए.
हंस ने भी मरते हुए धृतराष्ट्र को श्राप दिया कि जैसे आज उसके नेत्र निकाले गए हैं, उसके बच्चों का जीवन समाप्त किया गया. उसी तरह अगले जन्म में नेत्र न होने के कारण जीवनभर धृतराष्ट्र अपमानित होते रहेंगे.
हंस ने ये भी श्राप दिया कि धृतराष्ट्र के सामने ही उसके पुत्र मारे जाएंगे लेकिन नेत्रहीन होने के कारण वो पुत्रों का मुख चाहकर भी नहीं देख पाएंगे.
हंस का श्राप धृतराष्ट्र पड़ा और अगले जन्म में वो नेत्रहीन जन्में और जीवनभर अपमानित होते रहे. उसके पुत्र का उनके सामने ही अंत हो गया लेकिन वो उनका मुख नहीं देख पाए.
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