यह वो दिव्य स्थल है जहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियां मिलती हैं. यह न केवल महाकुंभ मेले का मुख्य केंद्र है, बल्कि श्रद्धालुओं के लिए एक पवित्र स्नान स्थल भी है. इसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व अतुल्नीय है.
गंगा किनारे स्थित यह मंदिर संकटमोचन हनुमान जी की आराधना का प्रमुख स्थल है. मान्यता है कि संत समर्थ गुरु रामदास जी ने यहां भगवान हनुमान की मूर्ति स्थापित की थी. यहां नवग्रह की मूर्तियां भी श्रद्धा का केंद्र हैं.
आलोपिबाग क्षेत्र में स्थित यह मंदिर संगम से करीब 3 किलोमीटर दूर है. यह स्थान भक्तों के लिए गहरी आस्था और धार्मिकता का प्रतीक है.
प्रयागराज का यह ऐतिहासिक मंदिर महाकुंभ 2025 से पहले नए स्वरूप में सजाया जा रहा है. इसकी पारंपरिक वास्तुकला और आधुनिक डिजाइन का संगम इसे अद्वितीय धार्मिक स्थल बनाता है.
दक्षिण भारतीय शैली में निर्मित यह 130 फीट ऊंचा मंदिर अद्भुत कलात्मकता का परिचायक है. यहां आदि शंकराचार्य, कामाक्षी देवी, तिरुपति बालाजी और सहस्त्रयोग लिंग की दिव्य मूर्तियां स्थापित हैं.
दारागंज में स्थित यह मंदिर शालिग्राम शिला से बनी भगवान विष्णु की मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है. यह मंदिर प्रयागराज का सबसे पूजनीय स्थल है, जहां बिना दर्शन के पंचकोसी परिक्रमा अधूरी मानी जाती है.
नेहरू परिवार का यह निवास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का साक्षी रहा है. जो अब संग्राहलय के रूप में भारतीय राजनीति के कई अहम पहलुओं की झलक दिखाता है.
यह संग्रहालय प्रयागराज की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को सहेजता है. प्राचीन मूर्तियों, चित्रकलाओं और ऐतिहासिक वस्तुओं का यह भंडार इतिहास प्रेमियों के लिए खजाना है.
इटली के संगमरमर से निर्मित यह स्मारक क्वीन विक्टोरिया को समर्पित है. 1906 में बनी यह इमारत अपने ऐतिहासिक महत्व और भव्य सुंदरता के कारण दर्शनीय स्थल है.
महाकुंभ 2025 के अवसर पर यह रेस्टोरेंट नई तरह का अनुभव प्रदान करता है. नाव की सवारी करते हुए पवित्र नदियों का दृश्य और स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद आध्यात्मिकता और मनोरंजन का अनोखा मेल है.
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