लाट साहब का जुलूस और जूतों से पिटाई, यूपी के इस शहर में 300 साल पुरानी परंपरा

Sandeep Bhardwaj
Mar 20, 2024

Laat Sahab Holi

रंगों वाली होली, फूलों वाली होली, पानी वाली होली, कीचड़ वाली होली इस प्रकार की कई होली के बारे में आपने सुना, देखा और पढ़ा होगा, लेकिन क्या आपने कभी ऐसी होली के बारे में सुना है जो जूता- चप्पलों से खेली जाती है. आगे आपको ऐसी ही होली की जानकारी दी जा रही है जो जूता- चप्पल से खेली जाती है और इस होली को कोलवाल भी सलामी देते हैं....

मथुरा- वृंदावन की फूलों वाली होली

मथुरा- वृंदावन की फूलों वाली होली और लठमार होली की तरह शाहजहांपुर की जूतामार होली भी देशभर में चर्चित है. होली के रंग-गुलाल के साथ जूते-चप्पलों की बौछार के बीच भैंसागाड़ी पर लाट साहब की सवारी पूरे ठाठ के साथ निकलती है.

लाट साहब की सवारी भैंसागाड़ी

इतिहासकारों के अनुसार यह परंपरा अंतिम नवाब अब्दुल्ला खां द्वारा 1746-47 में किले पर पुन: कब्जा करने के बाद शुरू हुई थी. पहले जुलूस में हाथी, घोड़े, ऊंट आदि शामिल होते थे. स्थानीय लोगों के विरोध और बेपर्दगी के चलते लाट साहब की सवारी भैंसागाड़ी तय कर दी गई.

लाट साहब का जुलूस

रंगों के पर्व होली पर लाट साहब का जुलूस निकालने और नवाबों के साथ होली खेलने की परंपरा की कोई निश्चित तिथि तो इतिहास में दर्ज नहीं है, लेकिन यह परंपरा करीब पौने तीन सौ साल पुरानी बताई जाती है.

शाहजहांपुर ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहर

इतिहासकार नानक चंद्र मेहरोत्रा ने अपनी पुस्तक ‘शाहजहांपुर ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहर’ में लिखा है कि अंतिम नवाब अब्दुल्ला खां हिंदू और मुस्लिम समुदाय में समान रूप से प्रिय थे.

नवाब अब्दुल्ला खां

नवाब अब्दुल्ला खां ने अपनी बेटी की शादी हाफिज उल मुल्क से करने के लिए किले के निकट रंगमहल बनवाया था. वर्तमान में इसे रंगमहला कहा जाता है.

नवाब साहब निकल आए

होली के अवसर पर नवाब अब्दुल्ला किले के बाहर आकर होली खेलते थे. उनके किले से निकलते ही लोग- ‘नवाब साहब निकल आए’ कहते हुए चिल्लाने लगते थे.

पुराने लोग बताते हैं कि

क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि पूर्व में होली के जुलूस के दौरान हाथी, घोड़े और ऊंट निकलते थे. उस समय भी जुलूस में बड़ी संख्या में लोग शामिल होते थे.

लाट साहब भैंसागाड़ी पर

बड़े जानवरों के कारण दूसरे समुदाय के लोगों ने अपने घर की दीवारों के नीची होने के चलते बेपर्दगी होने की बात कहते हुए विरोध किया. यह बात सरकार तक पहुंची तो जुलूस में हाथी, घोड़े और ऊंट शामिल करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इसके बाद लाट साहब भैंसागाड़ी पर निकलने लगे.

टकराव के कारण

1947 में दो समुदायों के मध्य टकराव की आशंका के चलते होली पर नवाब का जुलूस निकालने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई.

नवाब साहब का जलूस हुआ लाट साबह का जलूस

नगर के बद्धिजीवियों ने भी इसके लिए प्रयास किए, लेकिन असफल रहे. हालांकि बाद में इसका नाम नवाब साहब के जुलूस की जगह लाट साहब का जुलूस कर दिया गया.

कोतवाल भी देते हैं सलामी

इतिहासकार बताते हैं कि चौकसी से निकलने वाले लाट साहब का जुलूस पहले कोतवाली पहुंचता है. जहां कोतवाल सलामी देने के साथ ही लाट साहब को नेग देते हैं. वहां से विभिन्न मार्गों से होकर जुलूस गुजरता है.

कहीं जूते तो कहीं फूल

लाट साहब के सिर पर जूते-चप्पलों की मार पड़ती है. कुछ जगह फूलों से स्वागत भी होता है.

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