दरअसल, शादियों में कई रीति-रिवाज होते हैं. ऐसा ही एक रिवाज होता है मायरा, जिसे कई जगहों पर भात भी कहा जाता है. राजस्थान में ये सबसे ज्यादा प्रचलित है. मायरा को राजस्थानी भाषा में भात भरना भी कहते हैं.
बहन के बच्चों की शादी होने पर ननिहाल पक्ष की ओर से मायरा भरा जाता है. इसे सामान्य बोलचाल की भाषा में भात भी कहते हैं. इस रस्म में ननिहाल पक्ष की ओर बहन के बच्चों के लिए कपड़े, गहने, रुपये और अन्य सामान दिया जाता है. इसमें बहन के ससुराल पक्ष के लोगों के लिए भी कपड़े और जेवरात आदि होते हैं.
बीते बुधवार को नागौर जिले के झाड़ेली में बुरड़ी निवासी भंवरलाल गरवा की दोहिती अनुष्का की शादी ढींगसरी निवासी कैलाश के साथ हुई. भंवरलाल गरवा और उनके तीन पुत्र हरेंद्र, रामेश्वर और राजेंद्र ने मायरा भरा. मायरे में 16 बीघा खेत, 30 लाख का प्लॉट, 41 तोला सोना, 3 किलो चांदी, एक नया ट्रैक्टर, धान से भरी हुई एक ट्रॉली और एक स्कूटी दी.
मारवाड़ में नागौर के मायरा को काफी सम्मान की नजर से देखा जाता है. मुगल शासन के दौरान से यहां के खिंयाला और जायल के जाटों द्वारा लिछमा गुजरी को अपनी बहन मानकर भरे गए मायरे को तो महिलाएं लोक गीतों में भी गाती हैं.
राजस्थान के नागौर में बीते कुछ समय से मायरों में बढ़ चढ़कर खर्च किया जाता है. अब ये मायरे सोशल मीडिया में भी काफी चर्चित होने लग गए हैं.
कुछ लोग इसे दहेज मानते हैं तो कुछ लोग इस पुरानी परंपरा का हवाला देते हैं. सोशल मीडिया पर भी खूब चर्चा होती रहती है कि मायरा दहेज ही है. जो लड़के वाले अपने घर ले जाएं वह दहेज ही है.