भारत में किसी भी चुनाव में वोट डालने पर आपके बाएं हाथ की तर्जनी पर स्याही से निशान लगाने की परंपरा रही है. ये इस बात का संकेत है कि आप वोट डाल चुके हैं.
यह एक ऐसी स्याही होती है, जिसके दाग़ जल्दी नहीं मिटते हैं. शुरू में यह बैंगनी रंग की नज़र आती है, लेकिन समय बीतने के साथ ही यह काली पड़ जाती है. इसे अमिट स्याही या इंडेलिबल इंक के नाम से जाना जाता है.
भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में मतदान के बाद स्याही से निशान लगाना अनिवार्य है. ख़ास बात यह है कि दुनिया के अधिकांश देशों में यह स्याही भारत से ही जाती है.
इस स्याही को बनाने के लिए सिल्वर नाइट्रेट का इस्तेमाल किया जाता है. यह केमिकल पानी के संपर्क में आने के बाद काले रंग का हो जाता है और मिटता नहीं है.
पीठासीन अधिकारी द्वारा मतदाता की अंगुली पर स्याही लगाई जाती है. अमिट स्याही लगभग 10 दिनों तक चमकीली रहती है.
सिल्वर क्लोराइड पानी में घुलता नहीं है और स्किन से जुड़ा रहता है. इसे साबुन से धोया नहीं जा सकता. यह निशान तभी मिटता है जब धीरे-धीरे त्वचा की कोशिकाएं पुरानी होकर हटने लगती हैं.
नीले रंग की इस स्याही को भारतीय चुनाव प्रक्रिया में वर्ष 1962 में शामिल किया गया.
यह स्याही कर्नाटक के मैसूर में मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड नाम की कंपनी तैयार करती है.
इस कंपनी का इतिहास कर्नाटक के मैसूर में वाडियर राजवंश से जुड़ा है. मैसूर पेंट्स की स्थापना 1937 में महाराजा कृष्णराज वाडियार चतुर्थ ने थी.
वर्ष 1962 में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने इस स्याही को निर्वाचन प्रक्रिया में शामिल कराया. अब कंपनी इलेक्शन इंक या इंडेलिबल इंक के नाम से स्याही बनाती है.
कंपनी चुनावी स्याही को सिर्फ सरकार और उससे जुड़ी एजेंसियों को ही सप्लाई करती है.
इस फैक्ट्री में बाहरी लोगों की एंट्री प्रतिबंधित है. इसके अलावा फैक्ट्री में तीन चरण पर सिक्योरिटी चेक होता है. इसे सीक्रेट रूप से तैयार किया जाता है.
इस स्याही की 1 लीटर की कीमत करीब 12,700 रुपये है. वहीं एक बूंद की बात करें तो इस स्याही के एक बूंद की कीमत करीब 12.7 रुपये बताई जाती हैं.