गयासुर देखने में विशालकाय था. बचपन से उसे गाय चराना पसंद था, इसलिए उसका नाम गयासुर पड़ गया.
असुर होते हुए भी गयासुर के दिल में भगवान विष्णु का वास था. वह भगवान को पाने की इच्छा रखता था. इसके लिए उसने कोलाहल पर्वत पर कठिन साधना शुरू की.
गयासुर की कठोर साधना से देवी-देवता प्रसन्न हुए. तप का कारण पूछने पर गयासुर ने भगवान विष्णु से अनोखा वरदान मांगा.
गयासुर ने कहा कि वह सभी देव से तीर्थ, ऋषि आदि से ज्यादा पवित्र हो जाए. इसका वरदान उसको मिला. उसके दर्शन से लोगों को पाप से मुक्ति मिल जाती.
गयासुर के पापियों का उद्धार करने से नरक का दरवाजा बंद हो गया. भगवान विष्णु जानते थे कि मानव और असुर नश्वर है. वे देवताओं की तरह अमर नहीं हो सकते.
इससे निपटने के लिए देवताओं ने छल से एक यज्ञ के नाम पर गयासुर से उसका शरीर मांग लिया. उसने शरीर देने के लिए उत्तर की तरफ पांव और दक्षिण की ओर मुख करके लेट गया.
आज जिस गया में लोग मोक्ष पाने जाते हैं वो गया उसी गयासुर की देह से बना है जहाँ सभी देवताओं का वास है.
गया में पहले विविधि नामों से 360 वेदियां थी लेकिन उनमें से अब केवल 48 ही शेष बची हैं. फल्गु नदी के किनारे अक्षयवट पर पिण्डदान करना जरूरी समझा जाता है.
पौराणिक पात्रों की यह कहानी धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों में किए गए उल्लेख पर आधारित है. इसके काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.