"खुदा करे कि जवानी तिरी रहे बे-दाग"; अल्लामा इकबाल के शेरे

Siraj Mahi
Apr 21, 2024


इल्म में भी सुरूर है लेकिन... ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं


तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा... तिरे सामने आसमाँ और भी हैं


सितारों से आगे जहाँ और भी हैं... अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं


हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी... ख़ुदा करे कि जवानी तिरी रहे बे-दाग़


सौ सौ उमीदें बंधती है इक इक निगाह पर... मुझ को न ऐसे प्यार से देखा करे कोई


नशा पिला के गिराना तो सब को आता है... मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी


दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब... क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो


यूँ तो सय्यद भी हो मिर्ज़ा भी हो अफ़्ग़ान भी हो... तुम सभी कुछ हो बताओ तो मुसलमान भी हो


अमल से ज़िंदगी बनती है जन्नत भी जहन्नम भी... ये ख़ाकी अपनी फ़ितरत में न नूरी है न नारी है

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