"ज़िंदगी में जो इक कमी सी है", फिराक गोरखपुरी के शेर

Siraj Mahi
Jun 08, 2024

भूलना
ऐ भूल न सकने वाले तुझ को... भूले न रहें तो क्या करें हम

मौत
क्या जानिए मौत पहले क्या थी... अब मेरी हयात हो गई है

ज़िंदगी
ज़िंदगी में जो इक कमी सी है... ये ज़रा सी कमी बहुत है मियाँ

अक़्ल
अक़्ल में यूँ तो नहीं कोई कमी... इक ज़रा दीवानगी दरकार है

इश्क़
जिन की ता'मीर इश्क़ करता है... कौन रहता है उन मकानों में

महसूस
तिरे पहलू में क्यूँ होता है महसूस... कि तुझ से दूर होता जा रहा हूँ

ख़ैर
अगर बदल न दिया आदमी ने दुनिया को... तो जान लो कि यहाँ आदमी की ख़ैर नहीं

ज़माना
हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा है... नई नई सी है कुछ तेरी रहगुज़र फिर भी

मोहब्ब
मैं आज सिर्फ़ मोहब्बत के ग़म करूँगा याद... ये और बात कि तेरी भी याद आ जाए

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