Urdu Poetry: "...ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है"

Siraj Mahi
Sep 16, 2024

अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया, कि एक उम्र चले और घर नहीं आया

दुआ को हात उठाते हुए लरज़ता हूँ, कभी दुआ नहीं माँगी थी माँ के होते हुए

समुंदरों को भी हैरत हुई कि डूबते वक़्त, किसी को हम ने मदद के लिए पुकारा नहीं

वफ़ा की ख़ैर मनाता हूँ बेवफ़ाई में भी, मैं उस की क़ैद में हूँ क़ैद से रिहाई में भी

ज़माना हो गया ख़ुद से मुझे लड़ते-झगड़ते, मैं अपने आप से अब सुल्ह करना चाहता हूँ

मिरे ख़ुदा मुझे इतना तो मो'तबर कर दे, मैं जिस मकान में रहता हूँ उस को घर कर दे

दिल पागल है रोज़ नई नादानी करता है, आग में आग मिलाता है फिर पानी करता है

ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है, ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है

कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहजे में, अजब तरह की घुटन है हवा के लहजे में

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