Urdu Poetry in Hindi: अपनी मिट्टी ही पे चलने का सलीक़ा सीखो, संग मरमर पे चलोगे तो...

Siraj Mahi
Dec 22, 2024

जिस में न कोई रंग न आहंग न ख़ुशबू, तुम ऐसे गुलिस्ताँ को जला क्यूँ नहीं देते

अब हम भी सोचते हैं कि बाज़ार गर्म है, अपना ज़मीर बेच के दुनिया ख़रीद लें

ज़माना देखा है हम ने हमारी क़द्र करो, हम अपनी आँखों में दुनिया बसाए बैठे हैं

क़ातिल ने किस सफ़ाई से धोई है आस्तीं, उस को ख़बर नहीं कि लहू बोलता भी है

अपनी मिट्टी ही पे चलने का सलीक़ा सीखो, संग-ए-मरमर पे चलोगे तो फिसल जाओगे

झुक कर सलाम करने में क्या हर्ज है मगर, सर इतना मत झुकाओ कि दस्तार गिर पड़े

हम बहुत दूर निकल आए हैं चलते चलते, अब ठहर जाएँ कहीं शाम के ढलते ढलते

बारहा उन से न मिलने की क़सम खाता हूँ मैं, और फिर ये बात क़स्दन भूल भी जाता हूँ मैं

सफ़र पे निकले हैं हम पूरे एहतिमाम के साथ, हम अपने घर से कफ़न साथ ले के आए हैं

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