"चराग़ों के बदले मकाँ जल रहे हैं, नया है जमाना..." खुमार बाराबंकवी के शेर

Siraj Mahi
Sep 03, 2024

वही फिर मुझे याद आने लगे हैं, जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं

याद करने पे भी दोस्त आए न याद, दोस्तों के करम याद आते रहे

चराग़ों के बदले मकाँ जल रहे हैं, नया है ज़माना नई रौशनी है

इलाही मिरे दोस्त हों ख़ैरियत से, ये क्यूँ घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं

दुश्मनों से प्यार होता जाएगा, दोस्तों को आज़माते जाइए

सुना है हमें वो भुलाने लगे हैं, तो क्या हम उन्हें याद आने लगे हैं

दूसरों पर अगर तब्सिरा कीजिए, सामने आइना रख लिया कीजिए

हटाए थे जो राह से दोस्तों की, वो पत्थर मिरे घर में आने लगे हैं

ग़म है न अब ख़ुशी है न उम्मीद है न यास, सब से नजात पाए ज़माने गुज़र गए

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