डिप्रेशन के मरीज लोगों से बहुत कुछ छिपाने की कोशिश करते हैं. वो किसी से इस बारे में बात भी नहीं करते कि वो कैसा महसूस कर रहे हैं. वो या तो इसे लेकर शर्मिंदा महसूस करते हैं या फिर दोषी.
उन्हें लगता है कि दूसरा व्यक्ति उनकी भावनाओं को नहीं समझेगा, इसलिए वो कई बार अकेलापन महसूस करने लगते हैं. दरअसल ये सिर्फ दुख नहीं है, वो अपनी मानसिक स्थिति को किसी से शेयर नहीं कर पाते.
हालांकि डिप्रेशन से बाहर निकलने के लिए हमेशा सकारात्मक सोचने की सलाह दी जाती है, लेकिन हमेशा सकारात्मक बने रहना संभव नहीं है. डिप्रेशन आपको दूसरों से अलग कर देता है. आप उन चीजों का आनंद नहीं ले पाते जो आपको बहुत पसंद हैं.
डिप्रेशन से पीड़ित लोग अक्सर शर्म, अपराधबोध और लाचारी जैसी भावनाओं से जूझते हैं. वो इन सब बातों को अपनी बातचीत में नहीं लाना चाहते.
उन्हें हमेशा लग सकता है कि वो जीवन भर ऐसे ही चलते रहेंगे, लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक डिप्रेशन की वजह लोग कौन सी बातें शेयर नहीं करना चाहते ये पूरी तरह से उनकी भावनाओं और मूड पर निर्भर करता है.
डिप्रेशन से पीड़ित लोग अपनी सारी भावनाओं को शब्दों के माध्यम से व्यक्त नहीं कर पाते हैं. अकेलेपन का एहसास भी उन्हीं भावनाओं में से एक है. डिप्रेशन से पीड़ित लोगों को लग सकता है कि दूसरे लोग उनकी स्थिति को नहीं समझेंगे और उनकी मानसिक स्थिति के बारे में खुलकर बात नहीं करेंगे.
अवसाद के मरीज कुछ समय बाद इस कमी से लड़ने की कोशिश करने लगते हैं. वे दूसरों को यह बताने का तरीका अपनाते हैं कि वे कितना अच्छा महसूस कर रहे हैं। ताकि कोई उन पर ज़्यादा ध्यान न दे सके.
आप हकीकत में कितना थका हुआ महसूस करते हैं, खासकर तब जब आप डिप्रेशन के दौरान सामान्य दिखने की बहुत कोशिश करते हैं.
डिप्रेशन के मरीज आमतौर पर लोगों से ज़्यादा घुलना-मिलना पसंद नहीं करते हैं. वे लोगों को इसकी असली वजह भी नहीं बताते हैं. सामाजिक रूप से लोगों से दूर रहने के लिए उनके पास हमेशा शारीरिक समस्याओं से जुड़ा कोई न कोई बहाना होता है.
डिप्रेशन से पीड़ित लोगों में ऊर्जा की बहुत कमी होती है. जिसके कारण वे रोज़मर्रा के काम भी टालते हैं. हालाँकि, वे इस बात को लोगों से शेयर नहीं करते और न ही ऐसा करने में सहज होते हैं. इसलिए वे काम न कर पाने की असली वजह को छिपाते हैं.
यहां दी गई जानकारी मनोवैज्ञानिक डॉक्टर अंजलि शर्मा से बातचीत पर आधारित है.