"जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है"; मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद के शेर

उन्हें ठहरे समुंदर ने डुबोया... जिन्हें तूफ़ाँ का अंदाज़ा बहुत था

देखोगे तो हर मोड़ पे मिल जाएँगी लाशें... ढूँडोगे तो इस शहर में क़ातिल न मिलेगा

ख़्वाब का रिश्ता हक़ीक़त से न जोड़ा जाए... आईना है इसे पत्थर से न तोड़ा जाए

अजीब दर्द का रिश्ता है सारी दुनिया में... कहीं हो जलता मकाँ अपना घर लगे है मुझे

दीवाना हर इक हाल में दीवाना रहेगा... फ़रज़ाना कहा जाए कि दीवाना कहा जाए

काश दौलत-ए-ग़म ही अपने पास बच रहती... वो भी उन को दे बैठे ऐसी मात खाई है

चेहरे पे सारे शहर के गर्द-ए-मलाल है जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है

दरिया के तलातुम से तो बच सकती है कश्ती... कश्ती में तलातुम हो तो साहिल न मिलेगा

जिन सफ़ीनों ने कभी तोड़ा था मौजों का ग़ुरूर... उस जगह डूबे जहाँ दरिया में तुग़्यानी न थी

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