"अरे ओ आसमाँ वाले बता इस में बुरा क्या है" साहिर लुधियानवी के शेर

ज़ंजीर

तू मुझे छोड़ के ठुकरा के भी जा सकती है... तेरे हाथों में मिरे हाथ हैं ज़ंजीर नहीं

ख़ुशी

अरे ओ आसमाँ वाले बता इस में बुरा क्या है... ख़ुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुज़र जाएँ

ख़याल

मेरे ख़्वाबों में भी तू मेरे ख़यालों में भी तू... कौन सी चीज़ तुझे तुझ से जुदा पेश करूँ

क़रीब

दूर रह कर न करो बात क़रीब आ जाओ... याद रह जाएगी ये रात क़रीब आ जाओ

गिला

लो आज हम ने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उमीद... लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम

नज़र

अब आएँ या न आएँ इधर पूछते चलो... क्या चाहती है उन की नज़र पूछते चलो

ज़माना

आँखें ही मिलाती हैं ज़माने में दिलों को... अंजान हैं हम तुम अगर अंजान हैं आँखें

फ़िक्र

दिल के मुआमले में नतीजे की फ़िक्र क्या... आगे है इश्क़ जुर्म-ओ-सज़ा के मक़ाम से

ख़्वाब

आओ कि आज ग़ौर करें इस सवाल पर... देखे थे हम ने जो वो हसीं ख़्वाब क्या हुए

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