'मैं यहाँ बैठ के रोता था कभी'; सरफराज जाहिद के शेर

Siraj Mahi
Mar 20, 2024


ये जो तालाब है दरिया था कभी... मैं यहाँ बैठ के रोता था कभी


सुना है कोई दीवाना यहाँ पर... रहा करता था वीराने से पहले


रौशनी उन दिनों की बात है जब... दे रहा था कोई दिखाई हमें


गले लग कर हम उस के ख़ूब रोए... ख़ुशी इक दिन मिली थी राह चलते


मोहब्बत आम सा इक वाक़िआ' था... हमारे साथ पेश आने से पहले


लम्हा इतनी गुंजाइश रखता है ख़ुद में... आप उस में आने से पहले जा सकते हैं


वो एक ख़्वाब में मेरे क़रीब आए अगर... मैं सारे शहर की नींदें ख़रीद सकता हूँ


कुएँ की सम्त बुला ले न कोई ख़्वाब मुझे... मैं अपने बाप का सब से हसीन बेटा हूँ


इक अदावत से फ़राग़त नहीं मिलती वर्ना... कौन कहता है मोहब्बत नहीं कर सकते हम

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