अल्ट्रासाउंड

अल्ट्रासाउंड एक ऐसी मशीन है जो हमें हमारे शरीर के आंतरिक भागों की लाइव तस्वीरें देती है. इसके लिए सोनार और रेडियो तकनीक का उपयोग करता है.

आपने देखा होगा कि अल्ट्रासाउंड करने से पहले डॉक्टर उस अंग पर जेल लगाते हैं, जिसका अल्ट्रासाउंड स्कैन लेना होता है. हर किसी के मन में ऐसे सवाल आते होंगे कि आख़िरी यह क्या है.

इसके अलावा सवाल होता है कि इसकी जरूरत क्यों पड़ती है. इसके बिना अल्ट्रासाउंड नहीं हो सकता. अगर आप नहीं जानते हैं, इन सवालों के जवाब हम बताएंगे. आइए जानते हैं.

हेल्थ एक्सपर्ट के मुताबिक, अगर अल्ट्रासाउंड स्कैन करते वक्त जेल का उपयोग नहीं किया जाता है, तो रोगी की त्वाचा और अल्ट्रासाउंड मशीन के जांच उपकरण के बीच हवा होने से तरंगों का उनके बीच आवागमन मुश्किल हो जाता है.

विज्ञान की भाषा में इसे ध्वनिक प्रतिबाधा (acoustic impedance) कहते हैं. इसकी वजह से तरंगें शरीर के भीतर जाने के बजाय बाहर से ही वापस लौट जाएंगी या शरीर के थोड़ा भीतर जाकर वापस लौट जाएंगी. इसके कारण अंदर की तस्वीरें पूरी और साफ नहीं होगी.

अगर अल्ट्रासाउंड स्कैन के दौरान शरीर और जांच के बीच जेल लगाते हैं, तो यह ट्रांसड्यूसर और त्वचा के बीच हवा के सबसे छोटे कणों को भी जाने से रोकता है. इससे शरीर में हवा के जाने की संभावना लगभग जीरो हो जाती है.

ध्वनिक प्रतिबाधा भी कम होती है. इससे तरंगें एक माध्यम से दूसरे माध्यम में आसानी से जा सकती हैं. किसी भी ऊतक से टकराने पर कुछ तरंगें जांच में वापस लौट जाती हैं और कुछ टकराने के बाद आगे बढ़ जाती हैं.

वहां से आगे के टिशू यंत्रों से टकराकर वापस आती हैं. इसकी वजह से हमे शरीर की निचले अंगों की अच्छी फोटो देखने को मिलती है. जेल के कारण से आपकी स्किन और सेंसर के बीच लगातार सम्पर्क बनाए रखते हुए ट्रांसड्यूसर सरलता से बढ़ पाता है.

अब आपके मन में सवाल होगा कि ये कैसे बनता है, आपको बता दें कि यह जेल पानी और प्रोपीलीन ग्लाईकोल का बना होता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह जेल पूरी तरह से नॉन टॉक्सिक होता है.

डिस्क्लेमर

यहां दी गई जानकारी डॉक्टर तबस्सुम सिद्दीकी से बातचीत पर आधारित है.

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