छत्‍तीसगढ़: सत्‍ता की चाबी बीजेपी-कांग्रेस के पास नहीं, अजीत जोगी के पास रहेगी?
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छत्‍तीसगढ़: सत्‍ता की चाबी बीजेपी-कांग्रेस के पास नहीं, अजीत जोगी के पास रहेगी?

पिछली बार दूसरे चरण की 72 सीटों में से बीजेपी को 43 सीटें मिली थीं.

अजीत जोगी ने छत्‍तीसगढ़ जनता कांग्रेस के नाम से नया दल बनाया है.(फाइल फोटो)

छत्‍तीसगढ़ में आखिरी चरण के लिए जिन 72 सीटों के लिए मतदान हो रहा है, उनमें सबसे अधिक दांव बीजेपी का लगा हुआ है. ऐसा इसलिए क्‍योंकि पिछली बार छत्‍तीसगढ़ के मैदानी इलाकों की इन सीटों से बीजेपी ने सर्वाधिक 43 सीटें जीती थीं. यह इसलिए भी अहम है क्‍योंकि राज्‍य की कुल 90 सीटों में से 2013 में बीजेपी को 49 सीटें मिली थीं. इससे समझा जा सकता है कि बीजेपी का पूरा वोटबैंक कमोबेश इसी अंचल में है.

  1. 20 नवंबर को छत्‍तीसगढ़ में 72 सीटों के लिए मतदान
  2. पिछली बार बीजेपी ने इनमें से 43 सीटें जीती थीं
  3. सतनामी बेल्‍ट के इस इलाके में अजीत जोगी का प्रभाव

लेकिन इस बार छत्‍तीसगढ़ चुनाव में मुकाबला केवल बीजेपी और कांग्रेस के बीच नहीं हैं. पूर्व मुख्‍यमंत्री अजीत जोगी ने छत्‍तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जेसीसीजे) के नाम से नया दल बनाकर और मायावती की बीएसपी के साथ गठबंधन कर पूरी चुनावी लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है. इस दूसरे चरण में ही अजीत जोगी और बसपा का प्रभाव है.

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दूसरी अहम बात यह है कि छत्‍तीसगढ़ में मामूली अंतर से जीत-हार होती है. ऐसे में अजीत जोगी का गठबंधन बाकी दोनों दलों के लिए बड़ी मुश्किल पैदा कर सकता है. चुनावी विश्‍लेषक इस बात के कयास भी लगा रहे हैं कि हो सकता है कि इस गठबंधन के कारण पहली बार छत्‍तीसगढ़ में किसी को पर्याप्‍त बहुमत नहीं मिल पाए और त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति उत्‍पन्‍न हो.

उसका कारण यह है कि पिछली बार बीजेपी और कांग्रेस के बीच एक प्रतिशत वोटों का अंतर था और उसका नतीजा बीजेपी और कांग्रेस के बीच क्रमश: 49 और 39 सीटों के रूप में रहा. वोटों के लिहाज से यदि इस गणित को समझें तो 2013 में बीजेपी और कांग्रेस के बीच महज 97,574 वोटों या कहें कि 0.75 फीसद वोटों का ही अंतर था. इस बात से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि अजीत जोगी के रूप में तीसरी ताकत के आने से किसी का भी खेल खराब हो सकता है और जोगी किंगमेकर बन सकते हैं.

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सतनामी बेल्‍ट
छत्‍तीसगढ़ के दूसरे चरण में बिलासपुर और रायपुर मंडल की जिन सीटों पर चुनाव हो रहा है, इस इलाके को सतनामी बेल्‍ट कहा जाता है. यहां पर अजीत जोगी का खासा प्रभाव रहा है. अब बसपा से गठबंधन कर उन्‍होंने दलित और आदिवासी वोटों का गठजोड़ बनाने का प्रयास किया है. यह अजीत जोगी का प्रभाव ही रहा है कि जिसकी बदौलत वह कांग्रेस के करीब एक दशक तक निर्विवाद नेता बने रहे. हालांकि अब पहली बार वह कांग्रेस के बिना और कांग्रेस उनके बिना चुनाव मैदान में है.

किंगमेकर की भूमिका
हालांकि दूसरे चरण की वोटिंग से पहले एक न्‍यूज चैनल को इंटरव्‍यू देते हुए अजीत जोगी से जब पूछा गया कि क्‍या त्रिशुंक विधानसभा की स्थिति में वह बीजेपी को समर्थन दे सकते हैं तो सीधेतौर पर उन्‍होंने इससे इनकार नहीं किया. लेकिन इस बयान के वायरल होने के बाद उन्‍होंने कसम खाते हुए कहा कि वह मर जाएंगे लेकिन बीजेपी से किसी भी प्रकार की मदद नहीं लेंगे.

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राजीव गांधी के दौर में सियासत में आए अजीत जोगी के कांग्रेस में गांधी परिवार से भी करीबी रिश्‍ते रहे हैं. संभवतया इसलिए ही कुछ समय पहले उन्‍होंने कहा था कि वह आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के खिलाफ पूरे जोर-शोर से लड़ेंगे लेकिन गांधी परिवार, जिनके साथ देश के इस सबसे पुराने सियासी दल में रहने के दौरान उनके बेहद अच्छे रिश्ते थे, के खिलाफ नहीं बोलेंगे.

उन्होंने कहा था, ‘‘मैं कांग्रेस पार्टी छोड़ चुका हूं और विधानसभा चुनावों में पार्टी के खिलाफ प्रचार करूंगा लेकिन गांधी परिवार के खिलाफ नहीं बोलूंगा जिन्होंने हमेशा मुझे प्यार दिया है.’’ मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ बनने के बाद जोगी प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे. वह तब कांग्रेस के साथ थे. उनके इस बयान के भी चुनाव बाद की परिस्थितियों के मद्देनजर निहितार्थ निकाले जा रहे हैं.

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