जानिए, BJP को क्‍यों लगता है कि पूर्व IAS ढहा सकते हैं कांग्रेस का 41 साल पुराना गढ़
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जानिए, BJP को क्‍यों लगता है कि पूर्व IAS ढहा सकते हैं कांग्रेस का 41 साल पुराना गढ़

खरसिया विधानसभा से कांग्रेस की जीत का 1977 में शुरू हुआ सिलसिला आज भी जारी है. 1980में जनता पार्टी की प्रचंड लहर के बावजूद यहां से कांग्रेस को ही कामयाबी मिली थी.

कांग्रेस के 41 साल पुराने गढ़ को ध्‍वस्‍त करने के लिए बीजेपी ने रायपुर के कलेक्‍टर रहे ओपी चौधरी को खरसिया विधानसभा क्षेत्र से अपना प्रत्‍याशी बनाने का मन बनाया है. (फाइल फोटो)

नई दिल्‍ली: छत्‍तीगढ़ की राजनैतिक फिजाओं में दो बातों की चर्चा लंबे समय से हो रही थी. पहली बात यह थी कि रायपुर के कलेक्‍टर ओपी चौधरी अपने पद से इस्‍तीफा देकर बीजेपी ज्‍वाइन करने की तैयारी में हैं. दूसरी बात थी कि इस्‍तीफा देने के बाद ओपी चौधरी बीजेपी की टिकट से खरसिया विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ सकते हैं.  शनिवार को आईएएस ओपी चौधरी का इस्‍तीफा मंजूर होते ही बाकी बची बातों ने खुद-ब-खुद पूरी तरह से जमीन पकड़ ली है. लिहाजा, सत्‍ता पक्ष अब इस चर्चाओं को हवा देकर हर तरह से भुनाने की कोशिश कर रहा है. वहीं इस खबर से सकते में आई कांग्रेस के माथे पर बल जरूर हैं, लेकिन वह अभी भी पुराने जोश के साथ अभी भी ताल ढोक रही है. 
 
आईएएस ओपी चौधरी के इस कदम ने छत्‍तीसगढ़ के राजनैतिक माहौल को पूरी तरह से गर्मा दिया है. हर शख्‍स के जुबान पर इसी विषय से जुड़े सवाल है. पहला सवाल खरसिया विधानसभा क्षेत्र से जुड़ा है. जो लोग खरसिया विधानसभा क्षेत्र के बारे में जानते हैं वह इस इस्‍तीफे की अहमियत समझ रहे हैं, लेकिन लोग खरसिया के बारे में नहीं जानते हैं, उनका सवाल यही है कि खरसिया विधानसभा में ऐसा क्‍या हैं कि बीजेपी ने एक आईएएस का इस्‍तीफा करा दिया. वहीं लोगों के मन में यह भी सवाल है कि पूर्व आईएएस ओपी चौधरी में ऐसा क्‍या है, जिसकी वजह से बीजेपी ने अपने धुरंधर नेताओं को हासिए में रखकर उन्‍हें खरसिया से चुनाव लड़ाने का मन बनाया है.

  1. अर्जुन सिंह भी इसी सीट से चुनाव लड़कर पहुंचे थे मध्‍य प्रदेश विधानसभा
  2. 2013 में विधायक पटेल की नक्‍सलियों ने की हत्‍या, बेटे को मिली विरासत
  3. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को चुभी खरसिया से कांग्रेस की जीत
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चौधरी के सहारे कांग्रेस के 41 साल पुराने गढ़ को ढहाना चाहती है बीजेपी
1977 के मध्‍य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले हुए परिसीमन में खरसिया विधानसभा क्षेत्र अस्‍तित्‍व में आया था. 1977 के मध्‍य प्रदेश विधानसभा चुनाव में खरसिया विधानसभा से कांग्रेस के लक्ष्‍मी प्रसाद पटेल और जनता पार्टी के नेता शत्रुघन लाल पटेल के बीच मुकाबला हुआ था. इस चुनाव में कांग्रेस ने भारी अंतर से जीत दर्ज की थी. खरसिया विधानसभा से कांग्रेस की जीत का 1977 में शुरू हुआ सिलसिला आज भी जारी है. 1980में जनता पार्टी की प्रचंड लहर के बावजूद यहां से कांग्रेस को ही कामयाबी मिली थी. कांग्रेस के 41 साल पुराने गढ़ को ध्‍वस्‍त करने के लिए बीजेपी ने रायपुर के कलेक्‍टर रहे ओपी चौधरी को खरसिया विधानसभा क्षेत्र से अपना प्रत्‍याशी बनाने का मन बनाया है. 

अर्जुन सिंह भी इसी सीट से चुनाव लड़कर पहुंचे थे मध्‍य प्रदेश विधानसभा 
खरसिया सीट से 1977, 1980 और 1985 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर लक्ष्‍मी प्रसाद पटेल ने जीत दर्ज की. 1988 उप चुनावों में लक्ष्‍मी प्रसाद पटेल ने अपनी सीट मध्‍य प्रदेश के मुख्‍यमंत्री रहे अर्जुन सिंह के लिए खाली कर दी. अर्जुन सिंह ने खरसिया से जीत दर्ज की. 1990 में मध्‍य प्रदेश विधानसभा के चुनाव हुए. जिसमें अर्जुन सिंह ने लक्ष्‍मी प्रसाद पटेल की जगह नंद कुमार पटेल को यहां से उम्‍मीदवार बनाया. नंद कुमार पटेल ने लगातार1990, 1993 और 1998 के चुनावों में जीत दर्ज की. 2000 में छत्‍तीसगढ़ अलग राज्‍य बना और खरसिया छत्‍तीसगढ़ विधानसभा के अंतर्गत आ गया. जिसके बाद, छत्‍तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2003और 2008 में नंद कुमार पटेल ने इस सीट से कांग्रेस का विजय अभियान जारी रखा.   

2013 में विधायक पटेल की नक्‍सलियों ने की हत्‍या, बेटे को मिली विरासत 
खरसिया विधानसभा क्षेत्र 2013 में भी सुर्खियों में रहा है. इन सुर्खियों की वजह मध्‍य प्रदेश और छत्‍तीसगढ़ के गृहमंत्री रहे खरसिया विधायक नंद कुमार पटेल की सनसनीखेज हत्‍या थी. दरअसल, मई 2013में नक्‍सलियों ने नंद कुमार पटेल और उनके बेटे का अपहरण कर लिया था. जिसके बाद उनकी हत्‍या कर दी गई थी. नंद कुमार पटेल की हत्‍या के बाद छत्‍तीसगढ़ की राजनीति में बड़ा भूचाल आ गया था. कई बड़ी हस्तियों पर आरोप प्रत्‍यारोप हुए. नंद कुमार पटेल की हत्‍या के बाद उनकी विरासत उनके छोटे बेटे पटेल को मिली. 2013के विधानसभा चुनावों में उमेश पटेल ने 38,888 वोटों के अंतर से खरसिया विधानसभा से ऐतिहासिक जीत दर्ज की. 1977 के बाद इतने बड़े अंतर से कांग्रेस को खरसिया में जीत नहीं मिली थी. 

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को चुभी खरसिया से कांग्रेस की जीत
बीजेपी को खरसिया विधानसभा से कांग्रेस की जीत हमेशा से खटकती रही है. इस खटकन की वजह रायगढ़ लोकसभा सीट भी है. दरअसल, रायगढ़ लोकसभा सीट पर 1999 के बाद से बीजेपी का कब्‍जा है. 1999 के बाद रायगढ़ संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 8 विधानसभा सीटों में से 7 सीटों पर बीजेपी को जीत मिलती रही है, लेकिन खरसिया से वह कभी जीत हासिल नहीं कर सकी. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को उम्‍मीद थी कि मोदी लहर में इस बार कांग्रेस का यह गढ़ भी ढह जाएगा. 2014 लोकसभा चुनाव के नतीजे आए. इस सीट से बीजेपी के विष्‍णुदेव ने 2.16 लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज की, लेकिन वह खरसिया विधानसभा से इस बार भी हार गए. जिसके बाद इस सीट को बीजेपी ने अपनी नाक का सवाल बना लिया है. 

BJP को क्‍यों लगता है कि पूर्व IAS ढहा सकते हैं कांग्रेस का यह गढ़
महज 24 घंटे पहले रायपुर के कलेक्‍टर से पूर्व आईएएस हुए ओम प्रकाश चौधरी न केवल खरसिया विधानसभा बल्कि राज्‍य के युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय हैं. खरसिया में उनकी लोकप्रियता की सबसे बड़ी वजह, वहां के स्‍कूली बच्‍चों और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं से उनका व्‍यक्तिगत जुड़ाव है. आईएएस बनने के बाद से वह लगातार अपने क्षेत्र के युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवा रहे हैं. इसके अलावा, उनकी लोकप्रियता की एक वजह लाइलीहुड कालेज भी हैं. 

दरअसल, नक्‍सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में कलेक्‍टर रहते हुए ओपी चौधरी ने शिक्षा को लेकर बहुत काम किया था. यहीं से उन्‍होंने लाइवलीहुड कॉलेज  कॉसेप्‍ट की शुरुआत की. जिसे बाद में छत्‍तीसगढ़ के हर जिले में लागू किया गया. प्रधानमंत्री एक्सीलेंस अवॉर्ड हासिल कर चुके ओपी चौधरी आज भी गांव के सरकारी स्‍कूल के बच्‍चों को पढ़ाने जाते हैं. बीजेपी प्रत्‍याशी के तौर पर उनकी मजबूती के अन्‍य कारणों में उनका खरसिया विधानसभा के अंतर्गत आने वाले बायंग का निवासी होना भी शामिल है. इसके अलावा, अघरिया यानी पटेल और साहू बाहुल्‍य विधानसभा क्षेत्र में वह भी अघरिया समुदाय से संबंध रखते हैं. 

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