बस्तर के चुनाव के अजब रंग: कांग्रेस से चिढ़ते हैं नक्सली, फिर भी लहराता है 'पंजा' का पताका
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बस्तर के चुनाव के अजब रंग: कांग्रेस से चिढ़ते हैं नक्सली, फिर भी लहराता है 'पंजा' का पताका

छत्तीसगढ़ में पिछले 15 साल से रमन सिंह की अगुवाई में बीजेपी की सरकार चल रही है. गौर करने वाली बात यह है कि इसके बाद भी बस्तर जिले में कभी भी बीजेपी वर्चस्व कायम नहीं कर पाई है. 

छत्तीसगढ़ चुनाव 2018: बस्तर जिले में इस बार बंपर वोटिंग हुई है.

बस्तर: छत्तीसगढ़ की जनता ने ईवीएम मशीन में अपना फैसला दर्ज करा दिया है. यूं तो इस राज्य में 27 जिले हैं, लेकिन बस्तर जिले पर दुनिया भर की नजरें होती हैं. अपने अंदर सांस्कृतिक विरासत को सहेजकर रखने वाले इस जिले के कई राजनीतिक मायने हैं. शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत मुद्दों पर पिछड़ा यह जिला नक्सलवाद और आदिवासियों के साथ होने वाले अत्याचार को लेकर सुर्खियों में रहता है. नक्सलियों के दबाव में इस जिले में चुनाव का बहिष्कार आम बात हुआ करती थी, लेकिन इस बार का वोटिंग प्रतिशतक देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि यहां के लोगों की लोकतंत्र में आस्था बढ़ी है. छत्तीसगढ़ में पहले चरण में 18 सीटों पर वोटिंग हुई, जिसमें से 12 विधानसभा सीटें अकेले बस्तर जिले की रहीं. इस बार इन 12 सीटों पर करीब 66 फीसदी वोट पड़े. ये आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि इस इलाके की जनता समझ चुकी है कि वह नक्सलियो के बहकावे में आने वाले नहीं हैं.

  1. नक्सल प्रभावित जिला है बस्तर
  2. 2013 के चुनाव में 12 में से 8 सीटें कांग्रेस जीती थी
  3. इस बार यहां करीब 66 फीसद हुई है वोटिंग

बढ़े हुए वोटिंग प्रतिशत के क्या मायने निकाले जाएं?
छत्तीसगढ़ में पिछले 15 साल से रमन सिंह की अगुवाई में बीजेपी की सरकार चल रही है. गौर करने वाली बात यह है कि इसके बाद भी बस्तर जिले में कभी भी बीजेपी वर्चस्व कायम नहीं कर पाई है. साल 2013 में हुए विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो बस्तर की 12 विधानसभा सीटों पर 8 में कांग्रेस ने कब्जा किया था तो बीजेपी को 4 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था. इन आंकड़ों में बदलाव लाने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां के लोगों के बीच पहुंचकर बीजेपी के लिए वोट मांगे थे. पीएम मोदी ने यहां तक आरोप लगाया था कि कांग्रेस नक्सलियों का समर्थन करने वाली पार्टी है. 11 दिसंबर को वोटों की गिनती के बाद ही पता चल पाएगा कि बस्तर की जनता ने किसपर भरोसा जताया है. 

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हर बार की तरह इस बार भी नक्सलियों वोटिंग प्रभावित करने के लिए कई दांव चले थे, लेकिन आदिवासी वोटरों ने हिम्मत दिखाई है. किस्टारम, भेज्जी, गगनपल्ली, कलनार, गोलापल्ली आदि नक्सल इलाकों में जहां पिछली बार एक भी वोट नहीं पड़ा था वहीं इस बार जमकर मतदान हुआ है. बढ़े हुए वोटिंग प्रतिशतक के कांग्रेस और बीजेपी अपने-अपने मायने निकाल रहे हैं. बीजेपी का कहना है कि बस्तर की जनता ने बदलाव का मूड दिखाया है, इसलिए इस बार जोरशोर से वोटिंग की है. वहीं कांग्रेस का कहना है कि पिछले 15 साल में रमन सिंह सरकार ने बस्तर की जनता का कोई ख्याल नहीं रखा है, इसलिए इस बार उन्होंने सरकार बदलने के लिए ज्यादा संख्या में बूथ पर पहुंचकर वोट किया है.

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बस्तर के नक्सलियों को है कांग्रेस से चिढ़
यूं तो बस्तर में कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन करती रही है, लेकिन इसके इलाके में सक्रिय नक्सली इस पार्टी से नफरत करते हैं. इसके पीछे पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह का एक बयान और पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम की शासन में चलाया गया ऑपरेशन है. मनमोहन सिंह ने कहा था कि नक्सली भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं. वहीं चिदंबरम के गृह मंत्री रहते हुए नक्सलियों के खात्मे के लिए ऑपरेशन 'ग्रीन हंट' चलाया गया था. इस ऑपरेशन का सबसे ज्यादा असर बस्तर और सुकमा में देखने को मिला था.

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साल 2013 में सुकमा जिले की दर्भा घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस नेताओं के काफिले को निशाना बनाया था, जिसमें वरिष्ठ नेता विद्या चरण शुक्ल, सलवा जुडुम के संस्थापक महेंद्र करमा सहित 25 कांग्रेसी नेता मारे गए थे. माना जाता है कि इसके जवाब में सरकार ने ऑपरेशन ग्रीन हंट शुरू किया था.

बस्तर का इतिहास
बस्तर पहले दक्षिण कौशल नाम से जाना जाता था. यह छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी है. 39114 वर्ग किलोमीटर में फैला ये जिला एक समय केरल जैसे राज्य और बेल्जियम, इजराइल जैसे देशॊ से बड़ा था. जिले का संचालन व्यवस्थित रूप से हो सके इसके लिए 1999 में इसमें से दो अलग ज़िले कांकेर और दंतेवाड़ा बनाए गए. बस्तर का जिला मुख्यालय जगदलपुर, राजधानी रायपुर से 305 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. ज़िले की करीब 70 प्रतिषत आबादी गौंड, मारिया-मुरिया, ध्रुव और हलबा जाति की है.

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