MP: कमलनाथ ने बदहाल सड़क का फोटो किया शेयर, शिवराज ने कहा, 'तस्‍वीर बांग्‍लादेश की'
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MP: कमलनाथ ने बदहाल सड़क का फोटो किया शेयर, शिवराज ने कहा, 'तस्‍वीर बांग्‍लादेश की'

कमलनाथ के एक ट्वीट से विवाद खड़ा हो गया है.

कमलनाथ के एक ट्वीट पर शिवराज सिंह चौहान ने पलटवार किया है.

नई दिल्‍ली: 28 नवंबर को होने जा रहे विधानसभा चुनावों के मद्देनजर आरोप-प्रत्‍यारोप बढ़ते जा रहे हैं. इसी सिलसिले में मध्‍य प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष कमलनाथ ने मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दावों पर सवाल उठाते हुए ट्विटर पर एक फोटो शेयर की है. दरअसल शिवराज सिंह ने पिछले साल अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान वहां कहा था कि मध्‍य प्रदेश की सड़कें अमेरिका की सड़कों से भी अच्‍छी हैं.

  1. शिवराज ने एमपी की सड़कों को अमेरिका से बेहतर बताया था
  2. इसी दावे पर कटाक्ष करते हुए कमलनाथ ने एक फोटो शेयर किया
  3. इस पर चुटकी लेते हुए मुख्‍यमंत्री ने फोटो को बांग्‍लादेश का बताया

इसी कड़ी में बीजेपी नेता पर हमला करते हुए कमलनाथ ने एक फोटो शेयर करते हुए शायराना अंदाज में कहा, ''मामा जी के राज में भ्रष्टाचारी रास्तों की लगी है झड़ी, और वाशिंगटन से अच्छी मखमली सड़क कर लो घड़ी. भाजपा के सामने भ्रष्टाचार के सारे रिकॉर्ड लजाते हैं, मामाजी जाते जाते तथाकथित विकास को घड़ी कर साथ लिए जाते हैं. बढ़िया है.''

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कमलनाथ का सड़कों की बदहाली को लेकर किए गए इस ट्वीट से तत्‍काल विवाद भी खड़ा हो गया. ऐसा इसलिए क्‍योंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट के साथ दिखाई गई तस्वीर बांग्लादेश की बताई है. शिवराज ने ट्वीट कर कहा," हमारे कांग्रेसी मित्रों का क्‍या कहना! पहले दिग्विजय जी पाकिस्तान के पुल को भोपाल ले आए और अब कमलनाथ जी बांग्लादेश की सड़क को मध्य प्रदेश ले आए."

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टिकटों का वितरण आसान नहीं
इस बीच मध्‍य प्रदेश में एससी/एसटी एक्‍ट के मसले पर उठे सियासी तूफान के कारण पार्टियों के लिए इस बार टिकटों का वितरण इतना आसान नहीं रह गया है. ऐसा इसलिए क्‍योंकि एससी/एसटी एक्‍ट मुद्दे पर पक्ष-प्रतिपक्ष में सबसे मुखर स्‍वर मध्‍य प्रदेश में ही सुनाई दिए हैं. इसी मुद्दे के कारण दो नए संगठन उभर कर आए हैं और 28 नवंबर को होने जा रहे विधानसभा चुनावों के मद्देनजर परंपरागत रूप से बीजेपी और कांग्रेस के वोटबैंक को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. अनारक्षित समुदाय और आदिवासी वर्ग के इन दो नये संगठनों के मैदान में उतरने के कारण जातिगत वोटों के बंटवारे की चुनावी जंग और भीषण होती नजर आ रही है.

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सपाक्स
सामान्य, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण समाज संस्था (सपाक्स) ने सूबे की सभी 230 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा की है. जनरल कैटेगरी की नुमाइंदगी करने वाले इस संगठन के प्रमुख हीरालाल त्रिवेदी ने कहा, "हम चाहते हैं कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम(एससी/एसटी एक्‍ट) में संशोधनों को फौरन वापस लिया जाये. इसके साथ ही, समाज के सभी तबकों के लोगों को शिक्षा संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाये." सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ने कहा कि सपाक्स की मांग है कि देश भर में सरकार की किसी भी योजना के हितग्राहियों का चयन जाति के आधार पर नहीं किया जाये और सभी वर्गों के वंचित लोगों को शासकीय कार्यक्रमों का समान लाभ दिया जाये.

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जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस)
उधर, राज्य में जनजातीय समुदाय के दबदबे वाली 80 विधानसभा सीटों पर दम-खम आजमाने की तैयारी कर रहे संगठन जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) के संरक्षक हीरालाल अलावा ने कहा कि मौजूदा आरक्षण प्रणाली से किसी भी किस्म की छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जायेगी. हीरालाल अलावा, नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में सहायक प्रोफेसर की नौकरी छोड़कर सियासी मैदान में उतरे हैं. उन्होंने कहा, "देश में अब भी बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक असमानताएं हैं. सुदूर इलाकों में रहने वाले आदिवासी बुनियादी सुविधाओं के लिये तरस रहे हैं. ऐसे में आरक्षण प्रणाली के मामले में यथास्थिति बनाये रखने की जरूरत है."

मुखर जातिगत गोलबंदी के स्‍वर
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक गिरिजाशंकर का कहना है कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम में संशोधनों के बाद उभरे हालात सूबे के चुनावी इतिहास के लिहाज से "असामान्य" हैं. उन्होंने कहा, "राज्य में चुनावों के दौरान जातिगत समीकरण तो पहले भी रहे हैं. लेकिन इतनी मुखर जातिगत गोलबंदी पहली बार दिखायी दे रही है. इस स्थिति ने सभी राजनीतिक दलों को सकते में ला दिया है. सियासी पार्टियां इस बारे में रुख स्पष्ट करने में स्वाभाविक कारणों से डर रही हैं कि संबद्ध कानूनी संशोधनों के मसले में वे आरक्षित और अनारक्षित वर्ग में से किस तबके के साथ हैं."

सोशल इंजीनियरिंग का सहारा
राजनीतिक विश्‍लेषकों के मुताबिक अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम में संशोधनों के बाद मध्य प्रदेश में 28 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों के समीकरण बदल गये हैं. इस मुद्दे पर अनारक्षित वर्ग के सिलसिलेवार विरोध प्रदर्शन जारी हैं. जातिगत गोलबंदी के मद्देनजर जानकारों का मानना है कि सियासी दलों को अलग-अलग समुदायों को साधने के लिये चुनावी टिकट वितरण से लेकर प्रचार अभियान तक में "सोशल इंजीनियरिंग" का सहारा लेना पड़ सकता है.

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