इंसान अपने मजबूत इरादों और बुलंद हौसले से कुछ भी कर सकता है.
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नई दिल्ली/दमोह: इंसान अपने मजबूत इरादों और बुलंद हौसले से कुछ भी कर सकता है. व्यक्ति अगर ठान ले, तो अपनी दृण इच्छाशक्ति और कड़ी मेहनत से किसी भी मुकाम को हासिल कर लेता है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि एक आदिवासी मजदूर ने अपनी इच्छाशक्ति और मेहनत के दम पर इसे सही साबित किया है. इस मजदूर ने मजबूत इरादों के साथ अपने बेटे को शिक्षक तो बनाया ही, साथ ही उसने बस्ती के सभी बच्चों को शिक्षित कराने का संकल्प भी लिया. एक आदिवासी मजदूर ने ऐसा करके समाज को बड़ा संदेश दिया है.
दमोह जिले के सुदूर ग्रामीण अंचल के मड़ियादो गांव में चार सौ लोगों की आबादी वाली आदिवासियों की बस्ती है. इस बस्ती के निवासी रामसेवक ने कसम खाई थी कि वे अपने बेटे को अपनी तरह अनपढ़ नहीं रहने देगा. रामसेवक रोजाना मजदूरी करने के साथ जंगल से लकड़ियां लाकर उन्हें बेंचते थे. इन पैसों से उसने अपने बेटे लालसिंह को पढ़ाया और इस लायक बनाया कि वो शिक्षक बन सके. वहीं नौ साल पहले रामसेवक की मेहनत रंग लाई और उनका बेटा लालसिंह सरकारी शिक्षक बन गया. रामसेवक ने बताया कि इस बस्ती में वर्तमान पीढ़ी को छोड़ दिया जाए, तो एक भी आदमी पढ़ा-लिखा नहीं था. उन्होंने बताया कि करीब तीन दशक पहले उन्होंने संकल्प लिया कि वे अपने बच्चों को किसी भी हाल में शिक्षित करवा कर रहेंगे. इसके लिए रामसेवक ने जी तोड़ मेहनत की. उन्होंने मजदूरी के साथ जंगल से लकड़ियां लाकर बेंची, लेकिन बच्चों की पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दी. रामसेवक ने अपने बेटे लालसिंह को पढ़ा-लिखा कर इस काबिल बना दिया कि अब वो सरकारी शिक्षक बन गया है.
वहीं रामसेवक अब पिछले नौ सालों से अपनी मेहनत की कमाई से बस्ती के अन्य बच्चों को भी पढ़ा रहे हैं. उन्होंने बताया कि उनका सपना है कि इस गांव के सभी बच्चे पढ़कर अनपढ़ों के इस गांव का कलंक समाप्त करें. आपको बता दें कि रामसेवक के बेटे लालसिंह ने संस्कृत विषय से मास्टर्स की डिग्री अर्जित की है. साथ ही लालसिंह बीते नौ सालों से पड़ोसी जिले छतरपुर में सरकारी टीचर के रूप में कार्यरत हैं. लालसिंह ने बताया कि अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए वो गांव के बच्चों को यहां आकर पढ़ाते हैं. साथ ही बच्चों को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं. लालसिंह ने कहा कि अगर बच्चे ऐसे ही मेहनत करेंगे, तो बहुत जल्द बस्ती के हालात बदल जाऐंगे.
वहीं अब बस्ती के लोग भी रामसेवक की इस कोशिश में अपना साथ दे रहे हैं. आदिवासी बड़ा बताते हैं कि बस्ती के लोग अब खुद अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं. साथ ही लालसिंह की तरह वो अपने बच्चों को भी सरकारी महकमों में अफसर बनाना चाहते हैं. पहली नजर में ये सब आपको बेहद साधारण लगेगा, लेकिन पेट की आग बुझाने के लिए मजदूर के रूप में पसीना बहाने वाले शख्स की पहली प्राथमिकता रोटी होनी चाहिए. उससे अलग रामसेवक की प्राथमिकता शिक्षा थी और ऐसे मजदूर को शिक्षा दूत कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए.