जोड़-तोड़ के चुनावी दांवों से लेकर महागठबंधन की सुगबुगाहट के बीच प्रदेश में क्षेत्रीय पार्टियों (क्षत्रप) का दबदबा बढ़ता नजर आ रहा है.
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भोपाल: मध्य प्रदेश में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए चुनावी चौसर बिछ चुकी है. जोड़-तोड़ के चुनावी दांवों से लेकर महागठबंधन की सुगबुगाहट के बीच प्रदेश में क्षेत्रीय पार्टियों (क्षत्रप) का दबदबा बढ़ता नजर आ रहा है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में प्रदेश की मुख्य राजनीतिक पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस को क्षत्रपों से कड़ी टक्कर मिल सकती है. वहीं, क्षत्रपों की इस सीधी टक्कर से बचने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों की ओर से लगातार कोशिशें की जा रही हैं.
मध्यप्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित विधानसभा सीटों की संख्या 47 है. अनुसूचित जाति के लिए 35 और सामान्य वर्ग के लिए विधानसभा में 148 सीटें आरक्षित हैं. वर्तमान में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 में से 30 और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 35 सीटों में से 27 सीट बीजेपी के पास हैं. प्रदेश में बीजेपी के सामने अपनी इन सीटों को बरकरार रखने के साथ ही और अधिक सीट 2018 में जीतने की चुनौती है. वहीं, प्रदेश के बुंदेलखंड, विंध्य, ग्वालियर-चंबल और उप्र के सीमावर्ती जिलों की सीटों पर बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और समाजवादी पार्टी (एसपी) की उपस्थिति को नकारा नहीं जा सकता है.
इधर, कांग्रेस और बसपा के बीच अभी भी गठबंधन को लेकर स्थिति साफ नहीं है. साथ ही एसपी ने भी इस बार प्रदेश में जमकर चुनावी ताल ठोंकने का मन बना लिया है. सपा और बीएसपी दोनों पार्टियां प्रदेश की करीब 30 से अधिक सीट पर अपना प्रभाव रखती हैं. वहीं, साल 2003 में तीन विधायकों को जिताने वाली गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) भी चुनाव लड़ने के लिए तैयार है. गोंगपा का शहडोल, अनूपपुर, डिंडोरी, कटनी, बालाघाट और छिंदवाड़ा जिलों में अच्छा प्रभाव है. पिछले चुनाव में पार्टी का वोटिंग शेयर 1.5 फीसदी था.
वहीं, पिछले विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के पास 6.29 फीसदी था. पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें, तो बसपा, जीजीपी और अन्य ने 80 से अधिक सीटों पर 10,000 से ज्यादा वोट हासिल किए थे. आंकड़ों के लिहाज से महागठबंधन इस बार प्रदेश हार-जीत तय करने में अहम भूमिका निभाएगा.