हर 5 साल के बाद राम मंदिर का मुदा उठाया जाता है: अरुण गोविल
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हर 5 साल के बाद राम मंदिर का मुदा उठाया जाता है: अरुण गोविल

राम मंदिर पर बोले 'रामायण' के राम अरुण गोविल, धर्म पर राजनीति से जताई नाराजगी 

हर 5 साल के बाद राम मंदिर का मुदा उठाया जाता है: अरुण गोविल

मुंबई: भगवान राम की छवि नहींं बदल सकती, वो जैसी थी, वैसी ही है आज भी, उसको एक अलग तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है. बस, इतना फर्क हो गया है. बाकी भगवान राम तो तब भी भगवान थे, आज भी भगवान है. यह बात रामानंद सागर के टीवी सीरियल 'रामायण' में राम का किरदार निभाने वाले एक्टर अरुण गोविल ने कही. 

उन्होंने कहा कि बात तो आज भी पूजा की ही हो रही है. मंदिर बनेगा तो होगी तो वहां पूजा ही, लेकिन दूसरे तरीके से की जा रही गई. यह बात सही है कि पॉलिटिक्स की बात होती है, पोलिटिकल फायदे जरूर इस बात के लेने की कोशिश हो रही है. बड़ा अजीब सा लगता है. आप यू कहे यह विडंबना है, हमारे देश, हमारी संस्कृति की, के हर 5 साल के बाद यह मुदा उठाया जाता है, इलेक्शन के वक़्त. फिर बात को वही दबा दिया जाता है, इसपे ध्यान नहीं दिया जाता बिल्कुल भी. मंदिर बनाना बड़ी अच्छी बात है, मंदिर जरूर बनना चाहिए. पर क्योंकि मंदिर के नाम से एक बड़ी पॉजिटिव सी इमेज, एक पोसिटिव सी बात दिमाग में आती है, थॉट पॉजिटिव आते हैंं. तो उसको बहुत पाजिटिविटी के साथ बनाना चाहिए. 

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उस मंदिर के साथ नेगेटिविटी कहींं न हो, कहींं भी द्वेष न हो. बड़े पॉजिटिव तरीक़े से लेकर इसे आगे बढ़ना चाहिए, इतना मेरा कहना है. 

मैंने भी बनाए होते 6 पैक्स 
आज के समय पर बोलते हुए अरुण ने कहा कि समय कभी ठहरता नहीं है, समय को बदलना होता है. समय के साथ साथ, विसुअल्स भी बदलते ही है. उस वक़्त अगर सिक्स पैक एब्स की बात होती तो शायद मैंने भी बनाये होते. जहां तक भगवान राम की छवी की बात है, एक विसुअल की बात है, उनका विसुअल हमारे पास कोई था नहीं. रवि वर्मा जी ने जो पेंटिंग बनाई थी, जितना भी धर्म हैं, उन्हीं को लेकर चलता है. तब नहीं पता क्या इमेज रही होगी लेकिन यह जरूर हुआ था कि, रामानंद सागर जी की रामायण के बाद, भगवान राम की छवि जो पहले लोग इमेजिन किया करते थे अब एक साकार रूप में आ गयी थी. मुझे कितने लोग कहते हैं कि जब हम भगवान राम की पूजा करते हैं तो फेस आपका होता है. 

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छवि तो वही है आज भी, बस अपने अपने फायदे के लिए उसका इस्तेमाल हो रहा है. राजनीति की अपनी मजबूरियां होती हैं. पहले आदर्शों और अमूल्यों कि राजनीति होती थी. पहले राजनीति में धर्म नही होता था, अब धर्म आ गया, जातीय आ गयी. सभी अपना-अपना क्रेडिट लेना चाहते हैं क्योंकि इलेक्शन का वक़्त है. 

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