कैराना: 'भाभी' की बढ़त में 'देवर' का बड़ा रोल, BJP पिछड़ी
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कैराना: 'भाभी' की बढ़त में 'देवर' का बड़ा रोल, BJP पिछड़ी

चुनाव से ऐन पहले बीजेपी को झटका देते हुए निर्दलीय प्रत्‍याशी कंवर हसन अपनी भाभी तबस्‍सुम हसन के पक्ष में चुनाव मैदान से हट गए.

तबस्‍सुम हसन रालोद की प्रत्‍याशी हैं और सपा ने इनको समर्थन दिया है.(फाइल फोटो)

कैराना लोकसभा उपचुनाव में विपक्षी प्रत्‍याशी तबस्‍सुम हसन ने बीजेपी प्रत्‍याशी मृगांका सिंह से शुरुआती रुझानों में बढ़त बना ली है. यदि यही रुझान बरकरार रहा तो बीजेपी के हाथ से यह सीट फिसल सकती है. चार लोकसभा सीटों पर हुए चुनावों में सबसे ज्‍यादा लोगों की दिलचस्‍पी यूपी की कैराना लोकसभा सीट पर ही थी. दरअसल उसके पीछे सबसे बड़ा कारण गोरखपुर और फूलपुर के बाद बीजेपी और विपक्षी एकजुटता के बीच संघर्ष था. यह मुकाबला इसलिए भी रोचक हो गया था, क्‍योंकि माना जा रहा था कि गोरखपुर और फूलपुर के बाद बीजेपी कैराना में इसकी काट का कोई न कोई फॉर्मूला जरूर लेकर आएगी. लेकिन जातिगत समीकरण के लिहाज से विपक्षी एकजुटता बीजेपी पर भारी पड़ती दिख रही है.

  1. कैराना में विपक्षी प्रत्‍याशी तबस्‍सुम हसन के देवर कंवर हसन भी मैदान में थे
  2. चुनाव से ऐन पहले अपनी भाभी के समर्थन में चुनावी मैदान से हट गए
  3. बीजेपी को घेरने के लिए सपा, बसपा, रालोद और कांग्रेस एकजुट हो गए

हालांकि चुनाव से पहले मुकाबला त्रिकोणीय होने के कारण बीजेपी के पक्ष में माहौल माना जा रहा था. ऐसा इसलिए क्‍योंकि विपक्षी रालोद(RLD) प्रत्‍याशी तबस्‍सुम हसन के देवर कंवर हसन निर्दलीय प्रत्‍याशी के रूप में खड़े थे. इसलिए माना जा रहा था कि 'घर' के भीतर से ही चुनौती मिलने के कारण तबस्‍सुम के वोट कट सकते हैं. दरअसल 17 लाख वोटरों वाले इस निर्वाचन क्षेत्र में सर्वाधिक 5 लाख वोटर मुस्लिम हैं.

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इसकी बानगी पिछले पिछले लोकसभा चुनाव में उस वक्‍त देखने को मिली थी जब कंवर हसन बसपा से खड़े हुए थे जबकि तबस्सुम के बेटे नाहिद हसन सपा से खड़े हुए थे. उस चुनाव में कंवर हसन को 1.66 लाख वोट मिले थे. ऐसे में मुस्लिम वोटों का बंटवारा तय माना जा रहा था, लेकिन चुनाव से ऐन पहले बीजेपी को झटका देते हुए वह अपनी भाभी तबस्‍सुम हसन के पक्ष में चुनाव मैदान से हट गए. इस कारण मुकाबला सीधा बीजेपी बनाम विपक्ष हो गया. इसलिए शुरुआती रुझानों में तबस्‍सुम हसन की बढ़त बताती है कि मुस्लिम वोटों का बंटवारा नहीं हुआ.

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अखिलेश यादव
सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव प्रचार लिस्‍ट में नाम होने के बावजूद वहां प्रचार करने नहीं गए. उसका एक बड़ा कारण यह माना जाता है कि 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे और उसके बाद 2016 में हिंदू पलायन के मुद्दे के कारण पार्टी सूत्रों के मुताबिक सांप्रदायिक धुव्रीकरण की स्थिति उत्‍पन्‍न होने की आशंका थी. ऐसे में विपक्षी एकजुटता को देखकर लगता है कि किसी प्रकार का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण नहीं हुआ और इसका लाभ रालोद प्रत्‍याशी को मिलता दिख रहा है.

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उल्‍लेखनीय है कि कैराना लोकसभा सीट में शामली जिले की 3 और सहारनपुर जिले की 2 विधानसभाएं शामिल हैं. कैराना कस्‍बा शामली जिले में पड़ता है. 2011 में मायावती ने शामली को जिला घोषित करते हुए इसका नाम प्रबुद्ध नगर घोषित किया था. उसके बाद अखिलेश यादव ने 2012 में इसका नाम फिर से शामली कर दिया. उससे पहले कैराना, मुजफ्फरनगर की तहसील हुआ करता था.

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