शिवपाल भले ही चुनाव में जीत नही सकें लेकिन वह अपने मोर्चे के माध्यम से सपा का खेल कुछ हद तक जरूर खराब कर सकते हैं.
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यूपी की सियासत में अचानक बवंडर उठना शुरू हो गया है. दूर से दो अलग घटनाएं घटित होती दिख रही हैं लेकिन करीब से इनके तार आपस में जुड़े दिखाई देते हैं. एक तरफ राज्यसभा सदस्य अमर सिंह अचानक सक्रिय दिखाई देने लगे हैं. सपा से निष्कासन के बाद वह किसी भी प्रकार की सियासी चर्चा से दूर थे. लेकिन अचानक सपा नेता अखिलेश यादव पर हमला कर उनको समाजवादी की जगह 'नमाजवादी' नेता कहने लगे हैं. सिर्फ इतना ही नहीं सपा के दूसरे बड़े नेता आजम खान के 'घर' में घुसकर उनको चुनौती तक दे आए. यानी रामपुर में जाकर उन्होंने आजम खान पर करारे हमले किए. यह किसी से छुपा नहीं है कि अमर सिंह और आजम खान लंबे समय से सियासी प्रतिद्वंद्वी हैं.
दूसरी तरफ कभी सपा के आधारभूत स्तंभ माने जाने वाले शिवपाल यादव डेढ़ साल से पार्टी के भीतर हाशिए पर रहने के बाद अचानक मुखर हो गए हैं. इसके साथ ही उन्होंने समाजवादी सेक्युलर मोर्चा को फिर से सक्रिय करने का ऐलान किया है. इस तरह का ऐलान वह भी कर चुके थे लेकिन मुलायम सिंह यादव का आशीर्वाद नहीं मिलने के कारण वह अभी तक ठंडे बस्ते में पड़ा रहा.
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दरअसल शिवपाल सिंह यादव और अमर सिंह दोनों ही सपा के दिग्गज नेता रहे हैं. उनकी दोस्ती का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब अमर सिंह को 2010 में पहली बार सपा से निकाला गया था तो 2016 में शिवपाल की बदौलत ही वापस सपा में लौटे. सिर्फ इतना ही नहीं वह राज्यसभा भी पहुंच गए. इन सबका नतीजा यह हुआ कि सपा के शीर्ष परिवार में झगड़ा हो गया. इस खेमेबाजी में एक तरफ मुलायम-शिवपाल-अमर सिंह और दूसरी तरफ अखिलेश यादव-रामगोपाल यादव दिखाई दिए. इसकी परिणति सपा के तख्तापलट में हुई. नतीजा अखिलेश-रामगोपाल के पक्ष में रहा. मुलायम सिंह को पार्टी का संरक्षक बना दिया गया. शिवपाल को हाशिए पर धकेल दिया गया और अमर सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. अब सवाल उठ रहा है कि अब ऐसा क्या हुआ है कि अचानक शिवपाल और अमर सपा से हिसाब चुकता करने के मूड में दिख रहे हैं.
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बीजेपी का गणित
अखिलेश यादव ने आरोप लगाया है कि दरअसल ये नेता बीजेपी के इशारे पर ऐसा कर रहे हैं. इसके पीछे कारण यह माना जाता है कि अमर सिंह की पिछले कुछ महीनों में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ कई मुलाकातें हुई हैं. यहां तक कि यूपी इन्वेस्टर्स समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक रूप से एक प्रसंग की चर्चा के दौरान अमर सिंह का जिक्र कर दिया. उसके बाद से ही अमर सिंह के हौसले बुलंद दिख रहे हैं और सपा को कोसने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं. शिवपाल यादव के बारे में भी अमर सिंह का कहना है कि उन्होंने बीजेपी के एक शीर्ष नेता से अमर सिंह से मुलाकात तय कराई थी लेकिन शिवपाल उस मीटिंग के लिए नहीं पहुंचे.
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हालांकि सूत्रों का यह भी दावा है कि शिवपाल बीजेपी के कुछ बड़े नेताओं के संपर्क में हैं और उनके इशारे पर ही सपा में सेंधमारी कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने खुलेआम कहा है कि जिन लोगों का सपा में दम घुट रहा है, वह उनके मोर्चे में शामिल हो सकते हैं. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक सपा के गढ़ माने जाने वाले इटावा, मैनपुरी, फिरोजाबाद, कन्नौज जैसे इलाकों में शिवपाल की पार्टी कैडर में अच्छी पैठ मानी जाती है. इनके मुताबिक बीजेपी उसका लाभ उठाना चाहती है और सपा को कमजोर करने के लिए शिवपाल को शह दे रही है. समाजवादी सेक्युलर मोर्चा के उदय को उसी का नतीजा माना जा रहा है.
इसका कारण यह है कि शिवपाल भले ही चुनाव में जीत नही सकें लेकिन वह अपने मोर्चे के माध्यम से सपा का खेल कुछ हद तक जरूर खराब कर सकते हैं. दरअसल राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक बीजेपी ऐसा इसलिए कर रही है क्योंकि सपा-बसपा-कांग्रेस गठबंधन के चलते उसको तीन लोकसभा उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ा है. इस कारण यह संभावना बलवती दिखती है कि 2019 लोकसभा चुनावों में इन विपक्षी दलों के बीच यूपी में महागठबंधन हो सकता है. इसलिए बागी नेताओं के इन तेवरों को सपा में सेंधमारी के रूप में देखा जा रहा है. इसे महागठबंधन को कमजोर करने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है.
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इसी तर्क के आधार पर कहा जा रहा है कि बसपा को नुकसान पहुंचाने के लिहाज से सहारनपुर दंगों के बाद जेल में बंद भीम आर्मी के दलित नेता चंद्रशेखर 'रावण' को रिहा किया जा सकता है क्योंकि उनको भी दलितों के बीच उभरते चेहरे के रूप में देखा जा रहा है. कुल मिलाकर कहने का मतलब यह है कि 80 लोकसभा सीटों वाले यूपी में चुनावों के लिहाज से सियासी पत्ते फेंटे जाने का काम शुरू हो गया है. अभी तस्वीरें धुंधली दिख रही हैं लेकिन धुंध छंटने के बाद सतह पर साफ सियासी तस्वीरें दिखाई देंगी.