रोहिंग्या शरणार्थी: हमले के छह महीने बाद भी 'घर वापसी' के कोई आसार नहीं
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रोहिंग्या शरणार्थी: हमले के छह महीने बाद भी 'घर वापसी' के कोई आसार नहीं

पिछले वर्ष 25 अगस्त को, रोहिंग्या उग्रवादियों ने म्यांमार में कई सुरक्षा चौकियों पर हमला किया था और कम से कम 14 लोगों को कथित तौर पर मार डाला.

कॉक्स बाजार के नजदीक पालोंगखली शरणार्थी शिविर के पास खेलते रोहिंग्या शरणार्थी बच्चे. (Reuters/16 Jan, 2018)

ढाका: उनके सिर पर प्लास्टिक की चादरों की छत है, भोजन सहायता मुहैया करवाने वाली एजेंसियों के पास से आता है, रोजगार न के बराबर है और करने के लिए कुछ नहीं है. दु:स्वप्न तो बहुत हैं लेकिन अपना घरबार छोड़कर म्यांमार से बांग्लादेश भाग आए रोहिंग्या मुस्लिमों को एक सुकून है कि यहां कोई उनकी जान लेने नहीं आ रहा. पिछले वर्ष 25 अगस्त को, रोहिंग्या उग्रवादियों ने म्यांमार में कई सुरक्षा चौकियों पर हमला किया था और कम से कम 14 लोगों को कथित तौर पर मार डाला. बताया जाता है कि इसके कुछ घंटे बाद म्यांमार की सेना और बौद्ध समुदाय के लोगों की भीड़ ने रोहिंग्या बस्तियों पर हमला किया, हजारों को मौत के घाट उतार दिया, महिलाओं और लड़कियों का बलात्कार किया और घर तो क्या पूरे के पूरे गांवों को जला दिया.

  1. अगस्त 2017 से वहां से 7,00,000 रोहिंग्या भाग चुके हैं और अभी भी वहां से भाग रहे हैं.
  2. शरणार्थियों का कहना है कि वह नागरिकता मिलने पर ही म्यांमार जाएंगे,
  3. शरणार्थियों चाहते हैं कि उन्हें संयुक्त राष्ट्र के शांतिदूतों का संरक्षण मिले.

ब्रिटेन की नजर में रोहिंग्या संकट 'सबसे बड़ी मानवीय आपदाओं में से एक', चाहता है सुरक्षित 'घर वापसी'

बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुस्लिम भाग कर बांग्लादेश आ गए. अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ बांग्लादेश आए मोहम्मद अमानुल्लाह कहते हैं, ‘‘ यहां यह तो तय है कि कोई हमारी जान लेने नहीं आ रहा.’’ अब वह कॉक्स बाजार के बाहर कुतुपलांग शरणार्थी शिविर में रहते हैं. सहायता समूह डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के एक अनुमान के मुताबिक हिंसा के पहले महीने में म्यांमार में कम से कम 6,700 रोहिंग्या मुस्लिम मारे गए. बचे हुए लोग बांग्लादेश की ओर भागे. अब छह माह बाद भी उनके घर वापसी के कोई आसार नजर नहीं आ रहे.

संयुक्त राष्ट्र ने माना, क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है रोहिंग्या संकट

म्यांमार और बांग्लादेश ने रोहिंग्या लोगों को ‘‘सही-सलामत, सुरक्षा के बीच और सम्मान’’ के साथ धीरे-धीरे वापस भेजने के लिए एक समझौता किया है लेकिन प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी नहीं है और खतरा बना हुआ है. सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि खाली गांवों से रोहिंग्या के वहां रहने के नामोनिशान मिटाए जा रहे हैं. अगस्त से वहां से 7,00,000 रोहिंग्या भाग चुके हैं और अभी भी वहां से भाग रहे हैं. शरणार्थियों का कहना है कि वह नागरिकता मिलने पर ही म्यांमार जाएंगे, वह भी संयुक्त राष्ट्र के शांतिदूतों के संरक्षण में.

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