उद्योगपति बिड़ला ने लड़ा चुनाव, लोगों ने जो मांगा, वो दिया... फिर भी ऊंट पर घूमने वाले नेता से हारे!

Lok Sabha Election 1971: साल 1971 में हुए लोकसभा चुनाव में स्वतंत्र पार्टी ने केके बिड़ला को चुनाव लड़वाया. लेकिन वे किसान नेता शिवनाथ सिंह गिल से चुनाव हार गए थे. 

Written by - Ronak Bhaira | Last Updated : Apr 3, 2024, 10:50 AM IST
  • घनश्याम दास बिड़ला के बेटे हैं केके
  • किसान नेता शिवनाथ के सामने लड़ा चुनाव
उद्योगपति बिड़ला ने लड़ा चुनाव, लोगों ने जो मांगा, वो दिया... फिर भी ऊंट पर घूमने वाले नेता से हारे!

नई दिल्ली: Lok Sabha Election 1971: लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे पुराने चुनाव के किस्से याद किए जा रहे हैं. इस बार के चुनाव में कई बड़े उद्योगपति घरानों के चिराग भी चुनाव लड़ रहे हैं. हालांकि, यह पहली बार नहीं है. आजादी के बाद से ही रसूख वाले लोगों की चुनावी राजनीति में अच्छी-खासी दखल रही है. जब ये नामी उद्योगपति चुनाव में हारते हैं तो सुर्खियां बन जाती हैं. साथ ही बन जाते हैं कुछ किस्से, जो लोकतंत्र के हर पर्व पर याद आ ही जाते हैं. 

झुंझुनूं से केके बिड़ला ने लड़ा चुनाव
साल 1971 में लोकसभा चुनाव हुआ. इंदिरा गांधी के लिए यह परीक्षा की घड़ी थी. हालांकि, पाकिस्तान और बांग्लादेश अलग हो चुके थे, इसलिए इंदिरा की जीत पक्की मानी जा रही थी. कुछ नेताओं ने तो उन्हें मां दुर्गा की उपमा तक दे दी थी. लेकिन राजस्थान की झुंझुनूं लोकसभा सीट की पूरे देश में चर्चा हो रही थी. दरअसल, यहां से उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला के बेटे कृष्ण कुमार (केके) बिड़ला चुनावी मैदान में थे. उन्हें स्वतंत्र पार्टी ने टिकट दिया था. 

किससे थी बिड़ला कि टक्कर?
केके बिड़ला की टक्कर झुंझुनूं के ही शिवनाथ सिंह गिल से थी. गिल इलाके के किसान नेता थे. हालांकि, वे एक गुमनाम किसान नेता थे, जिन्हें झुंझुनूं के बाहर शायद ही कोई जानता होगा. शिवनाथ सिंह गिल कांग्रेस के प्रत्याशी थे. 

बिड़ला ने चुनाव में किया खूब खर्चा
वरिष्ठ पत्रकार त्रिभुवन एक्स (ट्विटर) पर लिखते हैं कि इस चुनाव में बिड़ला ने खूब पैसे बांटे थे. यदि किसी ने उनसे पानी की नल लगवाने के लिए कहा, तो उन्होंने वहां ट्यूबवेल ही खुदवा दिया. तब जाड़े के दिन हुआ करते थे. झुंझुनूं का शायद ही कोई घर रहा होगा जहां रिजाइयां नहीं पहुंचाई गईं. तब सेफ्टी पिन का कुछ खास चलन नहीं था. बिड़ला ने अपने नाम के बिल्ले बंटवाए. बिल्ले तो लोगों ने फेंक दिए, लेकिन कहते हैं कि सेफ्टी पिन आज भी कुछ घरों में है.  

बीड़ियों के बंडल के पैकेट बांटे
तब ग्रामीण इलाकों में बीड़ी का चलन हुआ करता था. लोगों को हरीभाई खंटन देसाई बीड़ियों के बंडल के पैकेट बांटे गए. कुछ लोगों ने तो इन पैकेट को अपनी बैठक में सजा लिया. 

ऊंट पर प्रचार करते थे गिल
बिड़ला ने चुनाव प्रचार के लिए जीप और मोटरसाइकिल का इस्तेमाल किया. जबकि शिवनाथ सिंह गिल ऊंट पर प्रचार करने जाते थे. क्योंकि वे इतने साधन-संपन्न नहीं थे.

चौंकाने वाले आए चुनाव नतीजे
नतीजे आए तो झुंझुनूं लोकसभा सीट के वोटर्स ने पूरे देश को चौंका दिया. कांग्रेस के प्रत्याशी शिवनाथ सिंह गिल को 2.23 लाख वोट मिले, जबकि के के बिड़ला को 1.24 मत ही प्राप्त हुए. गिल ने बिड़ला को करीब 1 लाख वोटों से चुनाव हरा दिया. कहते हैं कि देश के कई लोग उस वक्त गिल से मिलने आए, वे देखना चाहते थे कि आखिरकार इतने बड़े उद्योगपति को किसने चुनाव हराया है. 

फिर कभी गिल संसद नहीं पहुंचे
गिल के लिए आगे का राजनीतिक सफर कुछ खास अच्छा नहीं रहा. अगले ही चुनाव में बिड़ला जनता पार्टी के प्रत्याशी कन्हैया लाल से 1.26 लाख वोटों से चुनाव हार गए. बिड़ला फिर कभी सांसद नहीं बन पाए. जबकि दूसरी ओर, केके बिड़ला 1984 से 2002 तक लगातार 18 साल तक राज्यसभा सांसद रहे. 

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