नई दिल्ली. दिल्ली विधानसभा के चुनाव सिर पर हैं. केजरीवाल ने भाजपा के सामने बड़ी चुनौती पेश की हुई है. केजरीवाल के डिप्टी-कमांडर मनीष सिसोदिया भी आज अपने निर्वाचन क्षेत्र पटपड़गंज से अपना नामांकन दाखिल कर रहे हैं. आज जब वे पीछे मुड़ कर देखते हैं तो नज़र आती है बीस साल की उनकी एक सफलता की यात्रा.
उपमुख्यमंत्री थे पत्रकार एक ज़माने में
दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया आज से लगभग बीस साल पहले पत्रकार की भूमिका में थे. पत्रकार के तौर पर वे एक निजी चैनल में सेवायें दे रहे थे जिसके पूर्व वे किसी समाजसेवी संस्था में भी काम करते थे. इस चैनल से मोह भंग होने के बाद मनीष ने प्रवेश किया एक नई फील्ड में.
खोला था अपना एक एनजीओ
पत्रकारिकता को त्याग कर मनीष सिसोदिया ने परिवर्तन नाम के एक एनजीओ में काम किया. सुनते हैं उसे भी छोड़ कर उन्होंने अपना एक एनजीओ शुरू किया था जिसे लेकर दिल्ली में उनका काफी जनसम्पर्क हुआ था. इस दौरान ही उनका परिचय अरविन्द केजरीवाल से हुआ जिसका आगे चल कर मनीष को जम कर फायदा मिला.
फिर आये अन्ना के आंदोलन में
मनीष सिसोदिया का सितारा बुलंद हुआ अन्ना के आंदोलन से. 2011 में भ्रष्टाचार के विरोध में और जनलोकपाल की मांग को लेकर समाजसेवी अन्ना हज़ारे ने दिल्ली में एक विशाल जन-आंदोलन खड़ा किया था. इस आंदोलन से जुड़ कर मनीष और केजरीवाल दोनों ही चर्चित हुए.
2013 में आये केजरीवाल के साथ
अन्ना हज़ारे के आंदोलन से सुर्खियां बटोर कर अरविन्द केजरीवाल ने अन्ना से किनाराकशी कर ली और अन्ना के विरोध के बावजूद राजनीतिक पार्टी बना कर दिल्ली के चुनाव में कूद पड़े. मौका देख कर मनीष सिसोदिया भी उनके साथ आ गए और फिर वे केजरीवाल के इतने करीबी बन गए कि आज जब कई बड़े नेता आम आदमी पार्टी छोड़ कर जा चुके हैं, मनीष सिसोदिया केजरीवाल के साथ फेवीकोल का जोड़ लगा कर डटे हुए हैं.
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