यूपी-बिहार नहीं इस राज्य में है यादवों की 'सबसे पावरफुल सीट', 1977 से रहा है दबदबा

राजस्थान में लोकसभा की 25 सीटें हैं. इसमें एक सीट है अलवर जहां यादवों का दबदबा माना जाता है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि 1977 से लेकर अब तक यहां से 9 बार यादव जाति का ही सांसद चुना गया है.

Written by - Akash Singh | Last Updated : Apr 6, 2024, 06:59 PM IST
  • जानिए इस सीट का सारा समीकरण
  • अलवर से 'यादवों' का है गहरा नाता
यूपी-बिहार नहीं इस राज्य में है यादवों की 'सबसे पावरफुल सीट', 1977 से रहा है दबदबा

नई दिल्लीः भारत की सियासत की बुनियाद में 'जाति' और 'धर्म' दो सबसे बड़े फैक्टर हैं. कई राज्य ऐसे हैं जहां जाति ही सूबे की राजनीति तय करती है. इन दोनों फैक्टर की मजबूती का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विधानसभा हो या लोकसभा हर चुनाव में सभी पार्टियां इसी लिहाज से अपने उम्मीदवारों और एजेंडों को तय करती हैं. देश के सियासी रूप से मजबूत दो बड़े राज्य यूपी और बिहार में यादवों का बड़ा प्रभाव माना जाता है. लंबे समय लेकिन इसके बावजूद भी लोकसभा की एक सीट ऐसी है जो यादवों की सबसे पावरफुल सीट मानी जाती है. लेकिन खास बात ये है कि ये सीट यूपी और बिहार की नहीं बल्कि राजस्थान की है, जहां जातिगत रूप से राजपूत और जाटों का प्रभाव माना जाता है.

अलवर लोकसभा सीट पर यादवों का प्रभाव
राजस्थान में लोकसभा की 25 सीटें हैं. इसमें एक सीट है अलवर जहां यादवों का दबदबा माना जाता है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि 1977 से लेकर अब तक यहां से 9 बार यादव जाति का ही सांसद चुना गया है. इस बीच सिर्फ 3 बार ऐसा हुआ जब अन्य जाति का नेता निर्वाचित हुआ है. 

आइए समझते हैं इस सीट का समीकरण
अलवर लोकसभा सीट में 8 विधानसभा आती हैं. तिजारा, किशनगढ़बास, मुंडावर, बहरोड़, अलवर ग्रामीण, अलवर शहरी, रामगढ़ और रामगढ़ लक्ष्मणगढ़. अब विधानसभा सीटों पर भी नजर डालेंगे तो तिजारा, मुंडावर, बहरोड़ सीट पर भी यादव जाति के लोग ही मौजूदा विधायक हैं. अलवर लोकसभा सीट की 3 विधानसभा पर बीजेपी का कब्जा है जबकि अन्य 5 पर कांग्रेस के मौजूदा विधायक हैं.

सियासी मजबूती में 'मठ' का हाथ
अलवर में नाथ संप्रदाय का खासा प्रभाव माना जाता है. इसी परंपरा से यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी आते है. यही वजह रही कि अलवर से 2019 में चुनाव जीते महंत बालकनाथ को भी योगी से जोड़कर चर्चा की जाती थी. अब यहां खास बात ये है कि इस नाथ संप्रदाय को मानने वालों में 'यादव' जाति के लोगों की अधिकता है. इस जाति में इस मठ का बहुत प्रभाव है. यही वजह रही कि नाथ संप्रदाय के 8वें मुख्य महंत बालकनाथ यहां से बड़ी जीत के साथ संसद पहुंचे थे.

अब समझिए कैसा रहा है दबदबा
1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में यहां से शोभाराम कुमावत सांसद बने. इसके बाद 71 तक अन्य जातियों का कब्जा रहा. लेकिन 1977 से कहानी बदल गई. 1977 में यहां से जनता पार्टी से रामजी लाल यादव चुनाव जीते और 84 तक सांसद रहे. फिर 84 में रामसिंह यादव कांग्रेस के टिकट पर जीते. फिर 89 में रामजीलाल जनता पार्टी से ही जीत गए. 1991 और 96 में फिर अन्य जाति के सांसद चुने गए लेकिन फिर 98 से लेकर 2009 तक यादव ही यहां सासंद बने. 2009 में जीतेंद्र सिंह राजपूत जाति से सांसद बने फिर 2009 से लेकर अब तक यहां यादवों का ही कब्जा रहा.

इस बार का हाल
इस बार बीजेपी ने इस सीट से भूपेंद्र यादव को टिकट दिया है तो वहीं कांग्रेस ने ललित यादव को मैदान में उतारा है. बसपा ने फजल हुसैन पर दांव खेला है. 

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