ज्ञानवापी परिसर के नीचे दबा है सनातनी अवशेष! खुदाई में दिखी 500 साल की स्थापत्य शैली

गुरुवार की शाम काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर निर्माण के लिए ज्ञानवापी मैदान में शृंगार गौरी के पास खुदाई की जा रही थी. पुरातत्व के जानकारों की मानें तो प्राप्त अवशेष को देख कर सहज ही कहा जा सकता है कि यह 16वीं सदी के मंदिरों की स्थापत्य शैली से मेल खाते हैं. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Sep 4, 2020, 10:46 AM IST
    • ज्ञानवापी के पश्चिमी हिस्से में एक सुरंग नुमा बड़ा सुराख भी देखा गया है
    • अवशेष में कलश और कमल के फूल स्पष्ट दिख रहे हैं, 15वीं-16वीं शताब्दी काल के होने का अनुमान
ज्ञानवापी परिसर के नीचे दबा है सनातनी अवशेष! खुदाई में दिखी 500 साल की स्थापत्य शैली

वारणसीः जमीन में मिट्टी की कुछ परतों के ही नीचे ज्ञानवापी का असल सच भी दबा हुआ है. बस जरा ही जोर लगाने का श्रम करना होता है. गुरुवार शाम काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर के लिए खुदाई हो रही थी, इस दौरान ज्ञानवापी परिसर में 500 साल पुराने अवशेष मिले हैं. इन अवशेषों की बनावट प्राचीन हिंदू देवी-देवताओं के मंदिर से बखूबी मेल खाती है. इसकी जांच करने पुरातत्व विभाग और बीएचयू के विशेषज्ञों की टीम चार सितंबर को ज्ञानवापी आएगी. 

अवशेष में दिख रहे हैं कलश व कमल के फूल
जानकारी के मुताबिक,  गुरुवार की शाम काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर निर्माण के लिए ज्ञानवापी मैदान में शृंगार गौरी के पास खुदाई की जा रही थी. पुरातत्व के जानकारों की मानें तो प्राप्त अवशेष को देख कर सहज ही कहा जा सकता है कि यह 16वीं सदी के मंदिरों की स्थापत्य शैली से मेल खाते हैं.

अवशेष में कलश और कमल के फूल स्पष्ट दिख रहे हैं. इस प्रकार के कलश और कमलदल 15वीं-16वीं शताब्दी के हिंदू देवी-देवताओं के मंदिरों में देखने को मिलते हैं. 

15वीं-16वीं सदी के हो सकते हैं अवशेष
अब इस तरह के अवशेष मिलने के बाद ज्ञानवापी परिसर जांच का विषय है. बताया गया है कि ज्ञानवापी के पश्चिमी हिस्से में जिस स्थान पर यह अवशेष मिला है, वहीं एक सुरंग नुमा बड़ा सुराख भी देखा गया है. हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि वह पूरी तरह सुरंग है या नहीं.

कहा जा रहा है कि पत्थर के अवशेष चार सौ से पांच सौ साल पुराने हो सकते हैं.  हो सकता है कि यह अवशेष इससे भी पुराने हो सकते हैं. जिला पुरातत्व अधिकारी सुभाष चंद्र यादव का कहना है कि पत्थर के अवशेष के स्थापत्य की शैली देख कर प्रतीत होता है कि यह 15वीं-16वीं शताब्दी के आसपास का है.  जहां तक सुरंग का प्रश्न है तो उसकी जांच किए बिना कुछ भी कह पाना संभव नहीं है. 

दो साल पहले भी मिले थे अवशेष
करीब दो वर्ष पहले भी ज्ञानवापी के पूर्वी हिस्से की प्राचीन दीवार को हटाने के समय भी कुछ पुरातन इमारत के अवशेष मिले थे. इनमें कुछ नक्काशीदार ढांचे और कुछ सीढ़ियां थीं.

पूर्व मंडलायुक्त नितिन रमेश गोकर्ण के कार्यकाल में मिले उन अवशेषों की जांच के लिए केंद्रीय एव राज्य पुरातत्व विभाग के अधिकारियों के साथ ही भारत कला भवन के तत्कालीन निदेशक को भी बुलाया गया था. उन अवशेषों की प्राचीनता भी लगभग इतनी ही बताई गई थी. 

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