यूं ही नहीं बन जाता है कोई डॉ. जुल्फिकार अली; खून-पसीने से सींचना होता है छात्रों का भविष्य
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यूं ही नहीं बन जाता है कोई डॉ. जुल्फिकार अली; खून-पसीने से सींचना होता है छात्रों का भविष्य

Dr Zulfiquar Ali: संभल के रहले वाले डॉ. जुल्फिकार अली अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के एक स्कूल में हिंदी के शिक्षक हैं. अभी हाल ही में राजस्थान की एक संस्था ने उन्हें शिक्षा और समाज सेवा में योगदान देने के लिए सम्मानित किया है. शिक्षक दिवस पर जी. सलाम उनकी शख्सियत को आपतक पहुंचा रहा है, छात्र और शिक्षक समेत आम इंसान भी उनसे प्रेरणा ले सके. 

डॉ. जुल्फिकार अली

अलीगढ़ः शिक्षक न सिर्फ अपने छात्रों में शिक्षा और ज्ञान का अलख जगाता है, बल्कि वह उसे एक लायक इंसान और किसी देश या समाज का जिम्मेदार नागरिक भी बनाता है. इसलिए कहा जाता है कि शिक्षकों के कंधे पर किसी राष्ट्र, समाज और वहां के नागरिकों को गढ़ने की जिम्मेदारी होती है. यही वजह है कि भारत के पूर्व राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन ने खुद को भारत के राष्ट्रपति के तौर पर याद रखे जाने से ज्यादा एक शिक्षक के तौर पर याद किया जाना पसंद किया था. उन्हीं के जन्मदिवस 5 सितंबर को हम हर साल शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं. 

आज हम आपको एक ऐसे शिक्षक से रूबरू कराएंगे जो सही मायनों में अपने शिक्षक होने की जिम्मेदारी निभाकर देश, समाज और मानवता की सेवा कर रहे हैं. ऐसे शिक्षक छात्रों के साथ-साथ दूसरे शिक्षकों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन जाते हैं. हम बात कर रहे हैं, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय स्कूल के वरिष्ठ हिंदी शिक्षक डॉ. जुल्फिकार अली की. वह न सिर्फ अपने छात्रों में ज्ञान, बुद्धिमत्ता और चरित्र के निर्माण का काम कर रहे हैं, बल्कि उन्हें अपने परिवार, समाज और देश का एक संवेदनशील इंसान और नागरिक बनाने का भी काम करते हैं. शिक्षा और समाज के प्रति उनके समपर्ण को देखते हुए राजस्थान की एक संस्था ’भव्य फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ ने उन्हें  अंतरराष्ट्रीय मैत्री सम्मेलन में ’ग्लोबल एक्सीलेंसी अवार्ड’ से सम्मानित किया है. डॉ. जुल्फिकार को शिक्षा, अनुसंधान और समाजसेवा क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए यह सम्मान दिया गया है.

डॉ. जुल्फिकार का शैक्षणिक सफर 
उत्तर प्रदेश के संभल जिले से ताल्लुक रखने वाले डॉ. जुल्फिकार एक अत्यंत साधारण परिवार से आते हैं, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से शिक्षा के क्षेत्र में काफी उंचा मुकाम हासिल किया है. शिक्षक डॉ. जुल्फिकार बताते हैं कि पीएचडी शोध के दौरान ही उन्हें स्नातकोत्तर हिंदी शिक्षक के तौर पर सेवा करने का मौका मिल गया था. वह हिंदी विषय पर पीएचडी होने के साथ ही असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए होने वाली पात्रता परीक्षा यूजीसी नेट में भी पात्रता हासिल कर चुके हैं. वह भारत में धर्मनिरपेक्षता विषय पर एक किताब भी लिख चुके हैं. उनके कई शोध पत्र राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हो चुके हैं और देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में वह अपना रिसर्च पेपर पेश कर चुके हैं. 

पत्रकारिता और लेखन में रूचि 
शिक्षक डॉ. जुल्फिकार के राष्ट्रीय स्तर की कई साहित्यिक व सामाजिक पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित होते रहते हैं. वह कई हिंदी पत्रिकाओं का संपादन भी कर चुके हैं. एएमयू अलीगढ़ की हिंदी पत्रिका 'अल- हबीब99’, एएमयू सिटी स्कूल की वार्षिक पत्रिका 'क्षितिज’, अलीगढ़- साहित्यिक पत्रिका 'वांग्मय’, और 'नौनिहाल टाइम्स’ का भी उन्होंने संबे अरसे तक संपादन किया है.

ब्रज भाषा शब्दकोश परियोजना पर काम 
डॉ. जुल्फिकार को उत्तर प्रदेश राज्य शिक्षा संस्थान, प्रयागराज ने ब्रज भाषा शब्दकोश निर्माण कार्य की परियोजना पर काम करने की जिम्मेदारी सौंपी हैं. उन्हें इस प्रोजोक्ट के तहत ब्रज भाषा का एक मानक शब्दकोश तैयार करना है. 

समाजिक कार्य और योगदान 
डॉ. जुल्फिकार शिक्षण, शोध और लेखन के साथ-साथ सामाजिक कार्य से भी जुड़े हुए हैं. वह ’हमसफर शैक्षिक एवं समाज कल्याण’ नाम से एक सोसाइटी भी चलाते हैं. इस संस्था के माध्यम से वह अलीगढ़ और उसके आसपास के इलाके के आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों की पढ़ाई की व्यवस्था करते हैं. खासकर, यहां उन विद्यार्थियों की मदद की जाती है, जो आगे पढ़ना चाहते हैं, लेकिन उनके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होती है.  

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पर्यावरण जागरुक्ता 
शिक्षक डॉ. जुल्फिकार अली छात्रों में पर्यावरण को लेकर जागरूक करने और उनके अंदर संवेदनशीलता पैदा करने के लिए लगातार कई तरह के प्रोग्राम आयोजित करते रहते हैं. पिछले तीन सालों से वह लगातार 'हमसफर’ के जरिए शहर के कई इलाकों में पौधारोपण मुहिम चला रहे हैं. इस मुहिम के तहत अबतक हजारों पौधे लगाए जा चुके हैंं.

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